हे मानव!
कैसे आओगे
कैसे पहुँच पाओगे तुम मुझ तक
तुम कहते हो ज़रा मिलना है
पूरा मिलना शायद तुम्हारे बस में
है ही नहीं
तुमने चाह लिया कि मिलना है
तो हे मानव!
क्या तेरी चाह से ही होगा मिलन
सब कुछ तेरी चाह से ही होना चाहिए
जो तू चाहता है वही क्यों होए
तो जान ले यह सत्य
जब तक ना आवेगा
बुलावा
सत्यमय परम का
तू नहीं जा पाएगा कहीं भी
न ऊपर न नीचे
और अब तो दौर शुरू हो गया है छँटनी का
कर्मयोगी सत्ययोगी प्रेमयोगी ही
चल पाएँगे
चल पाएँगे साथ प्रणाम के ……!!
- प्रणाम मीना ऊँ