अपने प्रत्येक भाव विचार व कर्म को अनन्य भक्ति व पूर्ण आस्था सहित परम सत्ता को समर्पण ही ब्रह्माण्डीय युगचेतना से संयुक्त होने का पूर्ण योग होने का मार्ग है। ऐसा योग जहां मानव शरीर सभी शक्तियों ज्ञानियों ऋषियों मुनियों वैज्ञानिकों युगदृष्टाओं अपने-अपने युग के सभी उन्नत व उत्कृष्ट ज्ञान विचार व उद्देश्य को मूर्तरूप देने का माध्यम बन जाता है। सभी ज्ञानों के पार जाने में सक्षम होता है बुद्धि की सीमितता से परे जाकर ही पराज्ञान का पूर्ण सत्य जान लेता है।
इसी कारण असीम अखण्ड अनुराग पूर्ण भक्ति-आस्था का मूर्तरूप बनकर-चेतन तत्व का प्रवक्ता हो जाता है उसमें अपना कुछ नहीं होता उसका पूरा अस्तित्व युग चेतना का प्रवाहक बन जाता है। ऐसे भक्तिमय शुद्ध प्रेममय मानव ही तारनहार होते हैं। स्वयं को तो तार ही लेते हैं- तभी तो उस पार की खबर जानते हैं वही बताने को अपने आंतरिक अंतरिक्ष से वापिस आकर सभी प्राणियों को तारने का कर्म निभाते व मानव कल्याण का कर्म रहते हैं।
कर्मकाण्ड साधना ध्यान जप तप योग आदि अनेकों आध्यात्मिक साधनाएं हैं जिनका पालन विभिन्न समुदायों के लोग या अपनी-अपनी रुचि, रुझान के अनुसार मानव करते हैं। इनसे जीवन स्तर अवश्य उठता है जीवन में सतोगुण वृद्धि होती है। इनमें संलग्न मानवों में कभी न कभी उनके स्वाभाविक गुण अवश्य ही खेल जाते हैं विशेषतया रजोगुण जो कि परम तत्व से योग में बाधक
बन जाता है।
पर पूर्ण प्रेम व भक्तियुक्त समर्पण में गुणों के खेल का कोई स्थान होता ही नहीं है अपितु गुणों का प्रभाव तिरोहित होने लगता है। ऐसे परम चेतना संयुक्त मानव के आभामंडल से ही रूपान्तरण प्रारम्भ होने लगता है रूपान्तरण का बीज बोया जाता है जो समय पर अवश्य ही अंकुरित होता है।
यही है पूर्णतया समर्पित
मानव का सत्य
सत्व का सत्य
प्रणाम का सत्य
वेद से भी परे चला गया
मानव मन मीना मन का अनमना मन
यही है सत्य
यही है सत्य !!
- प्रणाम मीना ऊँ