कर्म चक्र

कर्मचक्र पूरा करना ही होता है पूरा खाली होने के लिए, परमानन्द पाने के लिए सदा मन में ध्यान रहे- जो कुछ भी आप मन वाणी व कर्म द्वारा ब्रह्माण्ड में उछालते हैं वही हज़ार गुणा बढ़कर वापिस आएगा। यही प्रारब्ध है भाग्य है।

जो व्यक्ति अपने कर्मफल से मुक्त हो चुका हो वही सच्चा माध्यम, हीलर हो सकता है औरों को कर्मों से मुक्त कराने, प्रेम करुणा और सेवा का सहयोग देकर। कर्म जो तुमने किया वह तो तुम्हें वापिस मिलेगा ही उसको सहने की झेलने की शक्ति सही माध्यम ही दे सकता है या फिर स्वयं तपस्या करके शक्ति पाकर सब कर्मों का फल भस्म कर देने का पूरा उद्यम किया जाए।

यह बहुत लंबा व कठिन रास्ता है। तभी तो सत्संग का महत्व है और यह प्रभु की करुणा से ही होता है। जब पूरे मन से सहायता के लिए चीत्कार उठता है- सहायता आपके सामने सही सत्य स्वरूप में प्रकट होती है आती है, तब पूर्ण समर्पण में आने का ज्ञान भी तो चाहिए। पूर्ण समर्पण में भी तो तभी जा सकते हो जब अहम् त्यागो।

यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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