आज का ध्यान : हे मानव ! संशयों या प्रश्न पूछने में ऊर्जा व्यय करने की अपेक्षा सामने आए कर्म को कैसे पूरे मनोयोग शान्ति व धैर्य से पूर्णतया निभाना है इसका उद्यम करना होता है। क्योंकि प्रकृति का नियम है कि कर्म ही कर्म को काटता है। कर्म बंधनों से मुक्ति का उस परम चेतना ने बहुत ही अच्छा विधान किया हुआ है। कर्मों से कैसे किन-किन कर्मों से मुक्ति होगी वही मानव के सामने आते हैं।
जैसा कि श्रीकृष्ण ने कहा स्वत: प्राप्त युद्घ को अपना कर्म जान हे अर्जुनï! विषाद व संशय की अपेक्षा युद्ध को तत्पर हो। घटनाओं से बचना नहीं है उनसे कैसे अपनी पूरी क्षमताओं से गुजरना है इसी का पूरा प्रयत्न होना चाहिए। क्योंकि पूरी कर्मठता से किए गए कर्म से ही विवेक जागृत होता है और फलेच्छा रहित किए गए कर्म से आत्मबल जागृत होता है जो मानव के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करता है।
यही है सत्य, यहीं है सत्य
– प्रणाम मीना ऊँ