कर्मगति की पूर्णता

हे मानव ! मुझे शरीर रूप से कहीं जाना नहीं होता किसी वाद-विवाद का भागीदार नहीं होना होता। श्रीकृष्ण ने बताया भी और जीवन की तपस्या से सिखाया भी कि मैं केवल दृष्टा हूँ। सत्य का सारथी मात्र हूँ।

द्वापर में शारीरिक रूप से सारथी बनना ही कर्मगति की पूर्णता थी अर्जुन सरीखे साथी सखा के हेतु। अब कलियुग तक आते-आते युगचेतना का इतना विकास तो हो ही गया है कि मानसिक सारथी बनकर भी कर्मगति पूर्ण होगी। सत्यभाव संकल्प जीतेगा ही जब सत्य की पराशक्ति सारथी हो जाए।

दूरदर्शन पर मुकाबला कार्यक्रम में श्री रामदेव जी का कार्यक्रम देखा तो एक बात ध्यान में आई कि कैसे मेरे सत्य, आत्मिक बल को साधारण तांत्रिक ओझाओं और झाड़-फूँक वालों के स्तर पर गिरा कर इंडिया टुडे वाली एक पत्रकार शेफाली वासुदेव ने भारत की वेदमयी संस्कृति की तपस्या से प्राप्त दिव्यता का कचरा कर दिया था।

आज श्री रामदेव जी ने मुहँतोड़ जवाब दिया है कि वही लोग प्रश्न करें जो समझते-बूझते हैं, अज्ञानी-मूर्खों से क्या बात करनी। उपनिषदों में भी कई बार संदर्भ आता है जब ऋषि-मुनि इन्द्र आदि देवों, भोग विलास के प्रतीकों को एक-आध बात बताकर भगा देते जब भी वो प्रश्न लेकर आते कि बारह साल बाद आना आदि-आदि।

प्रश्न का उत्तर सत्य गीता तभी बनता है जब प्रश्न पूछने वाला अर्जुन के समान निद्राजयी बाहुबली दृढ़निश्चयी लक्ष्यभेदी हो और आत्मसमर्पण में घुटने टेक सत्य जानने की परम इच्छा और मार्गदर्शन की याचना करता है, न कि जब अपने अहम् में चूर भारी-भरकम शब्दों के मकड़जालों में घुमाकर अपने अपूर्ण ज्ञान की धौंस जमाने के चक्कर में तथा अपनी तथाकथित वीरता दिखाने वाला प्रदर्शनकारी अंहकारी निकृष्ट व पथभ्रष्ट जीव उत्तर माँगने की उद्दंडता दिखाता है।

सुपात्र ही सत्य जानने का अधिकारी है। सत्य तक सत्य ही पहुँचता है। यही ज्ञान-विज्ञान है प्रकृति का नियम है आत्मा का गुह्यïज्ञान है। धन-पदवी के मद में चूर, मिथ्याचारी व्यभिचारी जो धन से बल से सत्य खरीदने या जीतने का दंभ भरे वो कदापि सत्य दर्शन नहीं कर सकता ।

अब समय आ ही पहुँचा है जब सब जोड़-तोड़ में लगे व्यापारिक बुद्धिवालों का आसन डोलेगा, बहुत मौज उड़ा ली संसारी सम्पर्कों को भुनाने की, धन के बल पर खरीददार की आत्मा गिरवी रख अपूर्णता से भगीदारी की। मर्यादाहीन, सभ्यता व मर्यादा नहीं जानते, योग विमुख अहम् युक्त कर्महीन कभी भी महान परमयोग का सत्य नहीं जान पाते। ऐसे जीव मानव जीवन व्यर्थ गंवाते हैं और परम चेतनायुक्त मानव ऐसों के उद्धार में भी कर्म निभाते समय की मांग अनुसार संभवामि युगे युगे का सत्य दर्शाते हैं ।

यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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