एकात्म भाव

एकात्म भाव

हे मानव ! एकात्म भाव से अनुभूत हो सभी यहां एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं। एक-दूसरे को पूर्णता की ओर अग्रसर करने के माध्यम ही तो हैं। यहां सभी एक-दूसरे के कर्म धुलवाने, कटवाने या परिष्कृत कराने ही आए हैं। सभी को परमबोधि की सटीक सम्पूर्ण व्यवस्था में कुछ न कुछ कर्म निर्धारित कर सौंप कर ही भेजा गया है। जो कि ब्रह्मा विष्णु महेश, प्रतीकात्मकता, कृतित्व पूर्णता व संहार के लिए विशेषतया चुने हुए हैं।

प्रत्येक कर्म अच्छी तरह से निभाने के लिए ही सामने आ जाता है कर्म को टालने की अपेक्षा कैसे उसे पूर्णता से निभाया जाए इसका ध्यान करना होता है। इस कारण जो कर्म स्वत: ही प्राप्त हो उसे पूर्णता से जीकर ज्ञान का मोती बीनकर विवेक जगाना है। पढ़कर या जानकर ज्ञान का प्रदर्शन प्रभाव उत्पन्न करने हेतु करना अज्ञान है।

जियो जीकर बताओ जीवन उदाहरण स्वरूप हो प्रवचन न झाड़ो। क्या होना चाहिए उदाहरण होकर बताओ ! प्रत्येक कार्य करने के लिए ही तो सामने आता है।

जीवन जीना है पूर्णता से भरपूरता से। दर्शनशास्त्रों कर्मकाण्डों या धर्मांध मान्यताओं की उंगली पकड़ कर नहीं। पढ़ी-सुनी कथा कहानियों का सच कौन जाने। क्या सत्य है क्या मिथ्या, छोड़ यह दुविधा काट यह संशय। जो सामने है वही सत्य है वही प्रकृति का प्रेम है वही कर्म परम बोधि का सत्य है।

तो हे मानव!
सत्यमय प्रेममय व कर्ममय हो जा
तभी ऐसा प्रकाश झरेगा
जो तुझे पूरा का पूरा भरेगा
जो सारा अंधकार काटेगा, जो हर फैलाव समेटेगा
इस एक ही बिंदु सत्य पर जब तू आएगा
तभी एकत्व का भाव
समझ पाएगा
एकात्म का आनन्द
जान पाएगा

यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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