आरोप लगा कर ऊर्जा प्राप्त करना सामान्य सी बात है। मानव का स्वभाव बन गया है पर मानव यह बात समझ नहीं पाता कि ऊर्जा के साथ-साथ वह आरोपी के गुणदोष भी खींच रहा है जो आध्यात्मिक प्रगति की गति बहुत धीमी कर देते हैं क्योंकि तब व्यक्ति अपने स्व में नहीं रहता उसमें कोई और भी जुड़ जाता है। इससे बचने के लिए कुछ निश्चय करने होंगे।
- अपनी निजी समस्याओं की घोषणा सबके सामने न करना
- वाद-विवाद से बाहर रहना
- साफ स्पष्ट निर्देश देना ताकि कार्य और कर्त्तव्य कर्म समय से पहले ही पूरा हो जाए और कोलाहल न मचे। समय आने पर हड़बड़ाहट ना हो। इससे कर्म पूरा न करने वाला दोषी अपना दोष स्वत: ही समझ पाएगा।
- अपनी कमियों के लिए अपनी मानसिक तत्परता की चूक के लिए दूसरों पर दोष लगाना व्यर्थ है। ऊर्जा हनन है नकारात्मकता बटोरना है। अपनी वास्तविकता जानने के लिए अपने आप से प्रश्न करें।
- एक जैसी परिस्थिति आपके सामने बार-बार क्यों आ रही है जिसके कारण आप असामान्य, व्यथित क्रोधित या विचलित अनुभव करते हैं।
- कौन-कौन लोग उसके भागीदार बनते हैं, कैसे यह परिस्थिति बनी चली जाती है।
- उसकी परिणति क्या होती है। हर बार नतीजा क्या निकलता है परिणाम सकारात्मक होता है या नकारात्मक।
- संवाद को अनुचित रूप देने से बचना होता है, असभ्य संभाषण से बचें। वाणी योग सिद्ध करना होता है।
- अपने से वादा करें कि सदा प्रसन्न रहना है, खुशियाँ फैलाना है। सभ्यता की सीमा पार नहीं करनी है, चाहे कुछ हो जाए।
- जो भी मदद, सहायता या सहयोग चाहिए उसकी खोज स्वयं ही करनी है और उसके लिए सुपात्र व सुयोग्य बनने की पूरी चेष्टा करनी होगी।
- अपने क्रोध, कुंठाओं और व्यथाओं को जानकर उनका प्रदर्शन विवेक से करना ताकि कटुता न उपजे। किसी पर आरोप लगाने से पहले शान्त होकर यह सोचना है कि ऊर्जा को किस प्रकार कृतित्व एवं सुधार में लगाना है। आरोप लगाने के स्थान पर विकल्प सोचना है ना कि दूसरों को भी उत्तेजित कर वाद विवाद के लिए उकसाना है और अनजाने में कुछ अनर्गल प्रलाप कर देना जो कि आपके ही विरोध में प्रयोग कर दी जा सकती है।
- अपने को औरों से ऊँचा सिद्ध करने के लिए ऐसे कामों में हाथ डालना जो कि बहुत ही कठिन हो। अपनी अहम् तुष्टि के लिए अपनी सामर्थ्य व शक्ति से अधिक कई कार्यों
को करना। ये सब भी चिड़चिड़ेपन का कारण बन जाते हैं। तनाव देते हैं। - फिर इन तनावों के लिए दूसरों को, परिस्थितियों को या भाग्य को ही दोष देने लगना।
आरोप लगाने की अपेक्षा संवारने की युक्तियां सोच उस पर कर्म आरम्भ कर देना उत्तम है। जो भी मिला है उसका भरपूर उपयोग ही एक अच्छे मानव का गुण है। - सबकी ऊर्जाएं एक ही दिशा में निर्देशित करके ही लक्ष्य प्राप्ति होती है।
- सबकी ऊर्जा मिलकर एक लक्ष्य की ओर चले तभी ध्येय पूरा होता है।
यही सत्य है - – प्रणाम मीना ऊँ