जानती है सबकी आत्मा
यह तो जुड़ी है अपने ही स्व से
उस स्व के स्वरूप कृष्ण से
प्रकृति के ऐसे मायके से
जहाँ से भरपूर मिलता है
और यह संसार नोच-नोच खाने वाला ससुराल
और ला और लाकर दे
लूटना खसोटना ही धर्म है यहाँ
अच्छा ही है तपस्या के लिए
जाना नहीं पड़ता
गुफाओं जंगलों में
सब कुछ वहीं है जहाँ होती हूँ
जहाँ हूँ वहाँ भी कहाँ हूँ
पूरी की पूरी आत्मलीन हूँ
प्रभु की मीन हूँ,
कृष्ण की बीन हूँ
कृष्ण प्रेम से नित्य नवीन हूँ
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ