कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता
सब कुछ होता जाता है
अपने आप
सब अपना ही कुछ कर्म कर
अपने ही कुछ गुन खेल
बिछुड़ जाते हैं
न मिलने की खुशी होती है
न बिछुड़ने का गम होता है
जब होता है बस प्रभु ही प्रभु हमदम
सब लीला ही तो चलती है
फैलना सिमटना
आँखमिचौनी जैसा खेल
पर तू तो
चल अकेला चल अकेला
तेरा मेला पीछे छूटा राही
यहाँ किससे कहूँ मेरे साथ चल
यहाँ सबके सिर से सलीब है
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ