अहम् है जो तुम हो अपने को वही जानना और मानना तथा विश्वास भी करना। अहम् का उपयोग उत्थान के लिए आधारभूत शक्ति में करना है न कि कर्तापन के दम्भ व अहंकार में। जब प्रमाद आलस्य दुख संताप क्रोध विषाद हिंसा आदि स्थितियाँ हम पर हावी रहती हैैं तब हम अपनी स्वाभाविक स्थिति में नहीं रहते, कोई और स्व हमारे स्वयं के सत्य और दिव्यता के बीच होता है। यही कोई और स्व ही अहम् है।
अहम् एक दुर्बलता है, उत्थान को सीमित करता है और रुकावटें पैदा करता है। अहम् सदा दूसरों की स्वीकृति चाहता है और इस प्रकार की अहम् तुष्टि में बहुत ऊर्जा व्यय होती है। जो मानव आत्मा के ही गुणों में रमक र आत्मा की ही विभूतियों के अनुसार जीता है वो केवल ब्रह्माण्डीय विस्तार के लिए जीता है और प्रकृति की तरह बदले में कुछ लेने की भावना से रहित हो अपने को मानवता के हेतु अर्पण करता है। उसका कर्म है केवल आनन्द का प्रसार। उसे न ही कोई स्वीकारोक्ति की आकांक्षा होती है और न ही किसी संसारी मांग की। वैराग्य की चरम स्थिति में होने के कारण ऐसा कर पाना उसके लिए संभव होता है ।
ऐसी स्थिति में पवित्र प्रेम का वो शक्तिरूप उभरता है जो सांसारिक स्वार्थमयी संवेदनाओं से परे होता है। अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं या विचारों को हवा देने के लिए, नियंत्रण की कुछ प्राप्ति की इच्छा या असहमति व द्वेष जताना कभी भी पवित्र प्रेम नहीं दर्शाता। यह सब मोह उत्पत्ति का कारण है और मोह ही आत्मा को ढंकता है। यही अज्ञान की उन पर्तों का निर्माता है जो हमारी सत्यमयी वास्तविकता के उत्थान व प्रस्फुटन में गतिरोध पैदा कर देता है। अहम् और कर्ताभाव की आत्मा भय और मोह से परे है। इसका चिरन्तन गुण है सत्य प्रेम व प्रकाश का प्रसार और इसके लिए उसे किसी बाह्य सहायता की आवश्यकता नहीं।
ब्रह्माण्डीय प्राण ऊर्जा का माध्यम बनने के पाँच नियम नित्य अपनाएँ-
कृतज्ञ होना प्रभु कृपा के लिए प्रार्थना :
आज मैं आभार में व प्रभु का कृपा पात्र बनने के भाव में जीऊँ। सर्वव्याप्त प्राण ऊर्जा शक्ति को सुयोग्य माध्यम बनने के लिए प्रार्थना करो। वो ऊर्जा जो पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है।
प्रत्येक पल पूर्णता से जीना :
आज मैं कर्तापन के भाव में नहीं रहूँगा और न ही किसी परिस्थिति व वस्तु के लिए चिन्ता करूँगा। प्रत्येक क्षण को अपनी सम्पूर्ण क्षमता से जियो, बाकी सब प्रकृति के नियमों पर छोड़ दो।
ऊर्जा का संतुलन लयात्मकता के लिए :
आज मैं अपनी ऊर्जा को उद्वेगों की तीव्रता में व्यर्थ नहीं गवाऊँगा। क्रोध व तीव्र उद्वेग यह अनुभव करने का फल है कि स्थिति पर आपका नियंत्रण नहीं रहा है। क्रोध व तीव्र उद्वेगों, भावुकता में कुंठाग्रस्त न होओ पर अपनी भावनाओं के तीव्र वेगों के प्रति चैतन्य अवश्य रहो। इससे अपनी ये दुर्बलता जानने का अवसर मिलता है कि अभी भी अवचेतन मन में भय, दबे हुए भाव व कुंठाएँ हैं।
अपने प्रति ईमानदार व सत्य बनो :
आज मैं अपना कर्म पूरी तरह मानसिक व शारीरिक क्षमताओं से एकदम सही और ईमानदारी से करूँगा। प्रत्येक वस्तु में सत्य का दर्शन करना ही अपने प्रति ईमानदार होना है। सत्य स्पष्टता लाता है। तुम्हारी ईमानदारी औरों में भी ईमानदारी लाए।
जड़ व चेतन सबका आदर व प्रेम :
आज मुझे प्रत्येक जीव जड़-चेतन को प्रेम व आदर देना है। प्रत्येक को आदर, प्रेमभाव देना अपने आपको और धरती माँ को आदर व प्रेम देना है । एक बार परम जीवन ऊर्जा स्रोत से संयुक्त होने पर कुछ भी गलत नहीं हो सकता, गलत या सही बुद्धि के खेल हैं। प्रगति पथ पर सब कुछ सही, right+wrong= ‘wright’, है। मृत्यु केवल शरीर का विनष्ट होना है, ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को मुक्ति प्रदान करने के लिए ताकि वो पुन: उत्पन्न कर सके।
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ