हे मानव ! ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण व्यवस्था का पूर्णता व सम्पूर्णता से संचालन प्रकृति के शाश्वत नियमों द्वारा ही हो रहा है। इन नियमों के विपरीत जाकर अपने कर्मों और भाग्य को दोष देना बन्द कर।
प्रकृति के नियम जानकर उनका धर्मपूर्वक पालन ही दिव्यता की ओर अग्रसर करेगा। सारी सृष्टि के साथ लयमान लयात्मक व गतिमान होने हेतु ब्रह्माण्ड के शाश्वत नियमों पर आधारित सत्य सनातन धर्मिता का पालन ही सच्चा धर्म है। जो धरा पर दिव्यता का आलोक प्रसार करने में सक्षम होगा। सत्य कर्म प्रेम व प्रकाश की अनुभूति करा अपना मानव जीवन सार्थक कर पाएगा !
तो पहले सही मानव बन। सही मानव का धर्म केवल मानवता ही है जो कि प्रकृति के परम शाश्वत विधि विधान पर आधारित है। इस धर्म को जानना ही मानव का धर्म है। जानकर कर्मरत होना, पूर्ण पुरुषार्थ से ही कर्म है। ऐसा कर्म ही कर्मबंधन काटने का ब्रह्मास्त्र है। मुक्तानंद अनुभव करने का मार्ग है।
बड़े भाग मानुष तन पावा। मानव तन तो मिला ही है दिव्यता अवतरित करने हेतु, उस अनदेखे अनजाने व रहस्यमय प्रभु की प्रभुता प्रकृति दर्शाने हेतु उस परम का स्वरूप परिलक्षित करने हेतु। तो अबकी ना जाना चूक। पूर्ण होकर पूर्ण में विलय होना ही मानव जीवन का चरमोत्कर्ष है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ