भारत के परम श्रेष्ठ गौरव को पुन: स्थापित करने के लिए प्रणाम प्रतिष्ठान का प्रणाम अभियान कटिबद्ध है और इसी दिशा की ओर अग्रसर है।
भारत की संस्कृति – सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
भारत की भाषा – देवनागरी लिपि में संस्कृत, हिंदी व अन्य भारतीय भाषाएँ
भारत का ज्ञान – वेद उपनिषद् गीता निहित आत्मज्ञान
भारत का विवेक – सर्वोच्च परम सत्ता की चेतना से योग स्थित होकर, संयुक्त होकर सही समय पर सही ज्ञान पाकर पूर्ण पुरुषार्थ से कर्मरत होना।
भारत वेद है और वेद ही रहेगा। वेद शरीर, मन और आत्मा का विज्ञान है। वेद ब्रह्माण्डीय सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है जो :-
न हिन्दुत्व, न बुद्धत्व, न सिखत्व, न ईसाइत्व, न इस्लाम आदि आदि
किसी भी कट्टरपंथिता में बाँधा नहीं जा सकता। वो केवल सनातन शाश्वत सत्य है। ऐसा सत्य जिसे जाना जा सकता है तो केवल :-
– पूर्णरूपेण सत्य होकर
– ब्रह्माण्डीय, Universal, सोच वाला होकर
– मनसा-वाचा-कर्मणा सत्य होकर। जो सोचना वही बोलना और वही करना। विचार, वाणी और कर्म में समानता व सामञ्जस्य।
– सच्चा मानव, इंसान होकर सच्ची मानवता के धर्म में जीने वाला होकर। सारे पाखंड ढोंग व दिखावा त्यागकर, सत्यता से संचालित व प्रकृति से लयात्मक होकर। यही पूर्ण आत्मिकता, आत्मीयता और एकत्व की ओर ले जाएगी।
आओ, इसे एक व्यावहारिक सच्चाई बनाएँ
एक ऐसी वास्तविकता जिसकी निरन्तरता महाभारत के बाद टूट तो गई पर पूरी तरह विलुप्त नहीं हो सकी। इसी कारण पुन: प्रस्फुटन को आतुर है क्योंकि अंदर ही अंदर सत्यमयी भारतीय संस्कृति की वो अदृश्य सरस्वती जीवंत रही :-
– सनातन धर्म, सही समय पर सही कर्म में
– प्राचीन ग्रंथों और वेदों के सम्पूर्ण वैचारिक तत्वों में
– वास्तु प्रतीकात्मक मूर्तियों, लोक कलाओं और कथाओं में
– सत्य भक्ति व तीर्थयात्राओं के स्थलों में
– योग, परम-चेतना में संयुक्त होने की विद्या और विज्ञान में
– श्रीराम श्रीकृष्ण स्वामी विवेकानन्द जी से महात्मा गांधी जी के चिंतन व कर्म की यात्रा में
– भारत के अनगिनत संतों पैगम्बरों ऋषि वैज्ञानिकों व दूरदर्शियों के ज्ञान में
– श्री अरविन्द की दिव्यता की खोज, जागृति और पहचान में
कभी न खत्म होने वाली यह कड़ी मीरा से नानक, कबीर से साँई बाबा तक अनेकों महान आत्माओं के भावों में देदीप्यमान है। सच्चाई कभी भी विलुप्त या नष्ट नहीं होती। परम् कृपालु परम्ïबोधि, सर्वोच्च चेतन तत्व का सटीक कर्मबोध ने उसे सारगर्भित प्रतीकों में अवगुंठित कर बाह्य आक्रामकों व आन्तरिक अशुद्धियों के संक्रमण से सदा बचाए रखा ताकि उचित समय पर कालानुसार उसे अपने
चुने सत्य मानव द्वारा वैज्ञानिक तथ्यों व विश्वसनीय सूत्रों द्वारा स्थापित कर सके।
प्रकृति के नियमों के इस चिरन्तन सत्य को कोई भी नकार नहीं सकता। सत्यता का आत्मबल ज्ञान और विवेक चाहिए विश्व में यह सत्य उजागर करने के लिए कि मानव अस्तित्व का सत्य और वास्तविकता वेद भारत की धरोहर हैं। क्योंकि वेद एक ब्रह्माण्डीय सोच के विस्तार सृष्टि के एकत्व और वसुधैव कुटुम्बकम् की धारणा वाली परम्परा है।
आओ, इस हेतु सुपात्र बनें
सुयोग्य व सुपात्र मानव वही होता है जो समयानुसार कर्मरत होने के लिए व रूपान्तरित होने के लिए पूर्णतया तत्पर हो। अपने अहम् भाव कर्तापन व ज्ञान के अहंकार को त्याग स्वयं के उत्थान समाज की प्रगति और मानवता की उन्नति व कल्याण के लिए उद्यत हो।
भारतभूमि सौभाग्यमयी है
भारत का संदेश मानवता के लिए दिव्यता से कम कदापि नहीं। इसको फिर से आज की मांग और आवश्यकताओं के अनुसार सही संदर्भ में समझना और जानना है ताकि जीवन पूर्णतया स्वस्थ शान्त संतुलित व लयात्मक होकर सभी मानवों से एकत्व अनुभव कर पाए। इस एकात्मकता को प्रवाहित करने, मानव और विश्व कल्याण हेतु बहुतों के पास बहुत से सुंदर सुझाव और दूरदर्शिता हो सकती है पर इनको मूर्तरूप देने के लिए दिव्य शक्ति, सत्य योग्यता, पूर्ण सामर्थ्य, अथक पुरुषार्थ और समय की सही पहचान का ज्ञान चाहिए। ऐसा तभी संभव होता है जब हम सत्यमयी सर्वश्रेष्ठ प्राकृतिक ऊर्जाओं के स्रोतों की ओर उन्मुख होते हैं। वो प्राकृतिक ऊर्जाएँ, उर्मियाँ व ज्ञान रश्मियाँ, Natural Energies Vibration and Wisdom rays, जो सनातन शाश्वत सत्य प्रेम व सतत् कर्म के नियमानुसार ही कालचक्र घुमाती हैं और अपना माध्यम चुनती हैं सत्य धर्म स्थापना हेतु…
यही है संभवामि युगे युगे।
अपने को जानने हेतु स्वयं पर कर्म करना भी धर्म है
इसके लिए प्रकृति की कार्यप्रणाली का ध्यान व चिंतन करना होता है। सम्पूर्ण सृष्टि की व्यवस्था एकदम सटीक पूर्ण व त्रुटिरहित है। इसमें अपनी स्थिति का सत्य जानना है। यह सत्यमयी तपस्या और निरंतर प्रयत्न व प्रयास हमें स्वत: ही सही संदेशों और निर्देशों को आत्मसात् करने हेतु सक्षम कर देता है। वो ज्ञान प्राप्त होता जाता है जो एक सकारात्मक व शोभामय जीवन जीने के लिए अपनी क्षमताओं व्यक्तिगत विशेषताओं और अपना सत्य जानने के लिए अभीष्ट है।
आओ, अपने मानव होने को सार्थक करें
प्रणाम प्रतिष्ठान द्वारा संचालित ‘मानव विकास योग’ के सूत्रों व संवाद परिसंवाद संगोष्ठियों के भागीदार और सहयात्री बनकर अपने मानव अस्तित्व का ज्ञान-विज्ञान जानकर उत्थान का मार्ग प्रशस्त करें। सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के माने हुए ‘माना मार्ग’ का तत्व समझकर मानव होने के आनन्द व गौरव की अनुभूति करें। भारत की सनातन धर्म संस्कृति पर आस्था व विश्वास रखने वाले सभी मानवों से प्रणाम का विनम्र निवेदन है कि इसी सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के ‘माना मार्ग’ अनुसार जीवन जीकर उदाहरण बनकर उसकी श्रेष्ठता स्थापित करें। अपनी लाइन बड़ी सिद्ध करके पर दूसरों की लाइन छोटी करके नहीं मिटाकर नहीं।
प्रणाम की आकांक्षा है कि सभी चैतन्य हों जागृत हों एकजुट हों। समस्त शंकाओं दुविधाओं संशयों और अज्ञानताओं को त्यागकर अपनी संवेदनाओं और क्षमताओं का पूर्ण सदुपयोग कर अपने मानव अस्तित्व को सार्थक करें। अन्तत: सनातन सत्य जीतता ही है। अनुपम दिव्य प्रेम कभी भी विफल नहीं होता और श्रेष्ठ कर्म मानवता हेतु किया गया ही सच्चा धर्म है। सच्चा धर्म वही है जो सत्यम् शिवम् सुन्दरम् संसार रचने का आधार बने।
ओ मानव! जाग, उठ अपने को जानने का पराक्रम कर सारी दिव्यता महानता और प्रभुता का बीज तेरे ही अंदर रोपित है। समस्त अंधकार की, अज्ञान की पर्तें भेदकर उसे प्रकाश की, ज्ञान की उर्वरा शक्ति से पोषित कर और कर दे सत्यमय प्रेममय कर्ममय और प्रकाशमय जग सारा।
धर्म बिना विज्ञान अधूरा है।
विज्ञान बिना धर्म अपूर्ण है।
यही है सत्य
यहीं है सत्य
- प्रणाम मीना ऊँ