हे मानव, अपने को जान। कैसे जानेगा यह तो तभी जान पाएगा जब यह समझेगा कि जानने योग्य क्या है। यही आन्तरिक यात्रा का आरम्भ है जिसका आधार केवल सही ध्यान ही है। अपने शारीरिक मानसिक व आत्मिक अस्तित्व केसत्य का ज्ञान, शारीरिक क्रियाओं मानसिक प्रक्रियाओं और आत्मिक उर्जाओं का ज्ञान, उनका आपसी सम्बन्ध, एक दूसरे पर प्रभाव, उनका ब्रह्माण्ड प्रकृति व वातावरण से सम्बन्ध। यही सब जानने योग्य है इसी हेतु मानव जन्म पाया। इन सबका सत्य जानने पर तो ही जान पाएगा कि तेरा ध्येय इस धरती पर क्या है? इस सृष्टि को तेरा योगदान क्या है?
सीखे जाने व पढ़़े हुए ज्ञान का ज्ञान भी तो जानना होगा। पाए ज्ञान को जीकर अनुभव से उसका सार तत्व जानना उसका ज्ञान पा लेना ही ज्ञान का ज्ञान जानना है और जो उपरोक्त सभी विधाओं का कर्ताकारण है सब जानता देखता समझता है। पूर्ण व्यवस्था का संचालक है, पूर्ण कर्म का प्रतिपादक है, उस परम चेतन तत्व, जो सदा चैतन्य है, उस परम दृष्टा उस परम जानकार को जानना है अपने पूर्ण पुरुषार्थ से।
यह तभी सम्भव है जब मानव प्रकृति प्रदत अपनी सभी क्षमताओं का विकास कर उनका पूर्ण उपयोग सत्य की दिशा में सत्य मार्ग पर चलकर ही सत्य को जाने। सत्य को जानने पर ही सारे रहस्यों का सत्य उजागर होता है। उस सच्चिदानन्द के स्वरूप को जानकर आनन्दानुभूति पाने का मार्ग प्रशस्त होता है।
तो हे मानव !
उठ चल पड़ प्रभुता की ओर
प्रभु की ओर
पकड़़ सत्य प्रेम व कर्म की डोर
यही सत्य है
यहीं सत्य हैै
- प्रणाम मीना ऊँ