हरिओउम् तत्सत्
हे मानव!
अब समय आया है चैतन्यता एवं जागरूकता पर काम करने का।
चैतन्यता की पहचान है अपने अन्दर झांककर बिल्कुल शून्य होकर आवाज सुनो बाह्य चैतन्यता से मुक्त होकर। अभी मन, बुद्घि, चैतन्यता की आवाज में अन्तर करना मानव भूल गया है। सदियों से सोई हुई आत्मा की आवाज (युग चेतना की आवाज) को जगाने की साधना का समय प्रारम्भ हो गया है।
जब आप पूर्णतया शान्त हैं अर्थात निर्लिप्त होकर अर्न्ततम् स्थिति तक पहुंचते हैं तब जो प्रतिध्वनित हो वही आत्मा की आवाज है। फिर भी मानव यह नहीं समझ पाता कि यह मन बुद्घि की आवाज है या आत्मा की आवाज है। इसके लिए आरम्भ में कुछ कठिन साधना करनी होगी जब लगे आपके अन्दर से कुछ सन्देश व निर्देश उठे हैं तो उनको ब्रह्मवाक्य समझकर उनका पालन करो इस प्रकार पालन करने पर यदि वह विवेक जगाते हैं वातावरण शुद्घ व आनन्दमय बनाते हैं तथा आपको उसमें अपना रूपान्तरण व उत्थान नजर आता है तो समझो आपने चेतना की बात को सुनने की क्षमता जगानी शुरू कर दी है। चेतना की आवाज कभी भी औरों के भावों को सन्तुष्ट करने या उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए नहीं है। जब भी अन्दर से आवाज उठे सच्चाई से उस पर चिन्तन मनन करें कि कहीं वो अहम् या कर्ताभाव की तृप्ति या दूसरों की इïच्छाओं के लिए तो नहीं है। कभी-कभी यह अनजानी आवाज आपकी कर्महीनता या शार्टकट ढूंढ़ने की प्रवृत्ति की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार धीरे-धीरे ध्यान योग व कर्म योग द्वारा चेतना की आवाज और बुद्घि की आवाज में अन्तर समझ आने लगेगा। यह पहली सीढ़ी है फिर ज्ञान और कर्म की सही परिभाषा समझ आने लगेगी इसके बाद जागरूकता उत्पन्न होगी और तब समय की मांग क्या है तथा परमचेतना आपको किस लिए माध्यम बना रही है यह सब समझ आने लगता है। इसलिए पहले चेतना, जागरूकता, चैतन्यता व जागरण इन शब्दों का सही अर्थ जानें और इनकी साधना करें क्योंकि यह अनुभव का विषय है और मानव की व्यक्तिगत क्षमता के अनुरूप उत्थान करने का माध्यम है। जागरण एक वास्तविक जागृत और परमचेतना से योग युक्त मानव द्वारा ही सम्भव है क्योंकि वह ट्रांसफारमर की तरह जानता है कि आपको किस समय कितनी ऊर्जा व संकल्प शक्ति देनी है।
यही सत्य है!!
- प्रणाम मीना ऊँ