इतने सारे बुद्घिमान मानव होते हुए भी विश्व विवेकहीन महामूर्खों की बस्ती बन कर रह गया है। एक ओर महामारी कोविड-19 कोरोना से लड़ने हेतु अंधाधुंध व्यय कर रहा है। सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त कर आधी अधूरी व्यवस्थाएं कर रहा है। उनको बचाने हेतु जिनका कि शायद मानव समाज देश और विश्व हित में कोई भी योगदान न हो।
दूसरी ओर अपरिमित धन व्यय कर रहा है युद्घ के लिए आयुधों पर उनको मारने के लिए जो हृष्ट पुष्ट हैं नौजवान हैं विश्व का भविष्य हैं। ऊपर से पर्यावरण का सत्यानाश।
वाह रे मानव! बलिहारी तेरी दोगली नीति की। मानव का इतना पतन परम बोधि व प्रकृति को कभी भी मान्य ना होगा प्रकृति अब अपने हिसाब से छंटनी करके ही रहेगी। प्रकृति के इस प्रकोप कोरोना को कम करने की प्रार्थना करना तथा सावधानी रखने का प्रयत्न करना तो स्वाभाविक व उचित ही है पर इसके साथ ही इस साधना व तपश्चर्या की अत्यंत आवश्यकता है कि मानव स्वाध्याय चिंतन मनन व ध्यान करें कि कहां चूक गया मानव अपने कर्तव्य कर्म व आंतरिक दिव्यता जाग्रत करने के पथ से। कहां पथभ्रष्ट होकर अटक गया बुद्घिविलास के चक्रव्यूह में और कर्म योग की अपेक्षा कर्महीनता को अपना लिया। कम से कम काम और अधिक से अधिक दाम वाली क्षुद्र नीतियों को अपना लिया। योग को भी व्यापार बना दिया। यम नियम ध्यान धारणा सब भूलकर केवल आसनों में ही लिप्त हो गया। इतना स्वकेंद्रित हो गया कि केवल शारीरिक स्वास्थ चाहिए क्योंकि संग्रहीत किये धन व भोग सामग्री को भोगने का आनंद ले पाये। मानव या मानवता समाज देश या विश्व के कल्याण के प्रति ध्यान या धारणा का सर्वथा अभाव हो गया है।
कोरोना व अन्य प्राकृतिक प्रकोप मानव को जगाने के लिए आते हैं कि मानव तमस की निद्रा से जागे। कितना पतन हो गया मानव का कि सादा सरल प्रेममय जीवन उच्च आचार व्यवहार व सभी मर्यादाएं भंग हो गयी हैं। अपनी प्रकृति व सृष्टि की प्रकृति के विपरीत आचरण ने मानव जीवन का संतुलन पूर्णतया बिगाड़ दिया है। अशांत लोभी स्वार्थी ईर्ष्यालु भ्रष्ट अहंकारी मानव तुच्छता व ओछेपन की हद तक पतित हो गया है।
अपनी दिव्यता को भूले हुए मानव को अपने मानव जीवन का उद्देश्य याद दिलाने हेतु कोरोना प्रकृति मां का थप्पड़ है। उसकी करुणा का कृपा प्रसाद है। मानव को अपने बिस्मृत सत्य स्वरूप की स्मृति दिलाने का माध्यम है।
उसे असंगत अस्त-व्यस्त विमूढ़ भ्रांत अशांत मानव नहीं चाहिए। उसे स्पष्ट और शुद्घ मानसिकता वाला सरल सहज स्वाभाविक कपटहीन मानव चाहिए जो सत्य प्रेम कर्तव्य कर्म और प्रकाश का प्रसार करे और सत्यम् शिवम् सुन्दरम् वसुधैव कुटुम्बकम व एकत्व जैसे सूक्तों को सार्थक करे।
जागो भारत जागो – जय सत्येश्वर
वन्दे मातरम् – जय भारत
- प्रणाम मीना ऊँ