किसी की आलोचना करने का आपको कोई अधिकार नहीं यदि सुधार करने की शक्ति या उपाय आपके पास नहीं है,या आपमें भी उस बुराई का कुछ अंश है।
सदैव दूसरों की कमियाँ देखना बखानना अपनी असफलताओं के लिए कष्ट के लिए अपने व्यवहार के लिए दूसरों पर दोषारोपण करना आपके अपने अंत:करण में व्याप्त ग्रंथियों का ही परिणाम है। ऐसा व्यक्ति कई बार अपने जीवन में आई बसंती बहार सुधार की गंगाधार और उन्नत विचार से स्वत: ही अपने को दूर कर लेता है। पर चक्रव्यूह तोड़ने के चक्कर में और ही और फँसता ही जाता है। वह सोचता है चक्रव्यूह तोड़ना उसके वश में है पर नहीं, प्रत्येक व्यक्ति अपने वातावरण से पाए गए ज्ञान का ही प्रयोग करता है।
परिणाम घुस तो गए निकल नहीं पाए अभिमन्यु की तरह। निकलना तो नियति के हाथ है। नियति! नीति सही नीति, सत्यमयी नीति, अंतरात्मा की नीति जो सत्यमयी प्रेममयी क्षमामयी दयामयी प्रकाशमयी और नम्रता का मूर्त रूप है।
यही सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ