हे मानव !
सारी समस्याओं की जड़ है कलुषित, स्वार्थी मानसिकता और अकल्याणकारी अशुभ भाव। जुगाड़ व तकनीक से अपना स्वार्थ साधने की कला में पारंगत होने को ही मानव ने समझदारी व विवेक समझ लिया है। इस सबको सुधारने हेतु सत्यमय कर्मठ और ज्ञानमय विवेकी उदाहरण स्वरूप सही मानव का संग व दिशा निर्देश चाहिए न कि विकृत नेतागीरी, दंभपूर्ण लंबे-लंबे प्रवचन या धन दौलत के नशे में चूर, खरीदारों की भीड़ और बिकने वालों की लंबी-सूची!
वैज्ञानिकों ने विज्ञान द्वारा समस्त सुविधाएं दीं पर उनके सदुपयोग की सही मानसिकता नहीं दी। दर्शनशास्त्रियों ने केवल ताॢकक बुद्धि और विकसित कर दी। दायित्व निभाने की कर्मठता नहीं समझाई। साहित्यकारों व लेखकों ने लेखन की समरसता व शब्द विलास की क्रीड़ा ही पाल ली क्रांति जगाने का पुरुषार्थ या दिशा निर्देश की प्रेरणा नहीं। प्रचार माध्यम ने भी व्यापारिकता को, सत्यकर्मों को सामने लाने की अपेक्षा अधिक महत्व दिया।
वेदों पुराणों व शास्त्रों का पढ़ना-रटना दुबारा लिखना केवल तरह-तरह की व्याख्याओं और टिप्पणियों में सिमट कर रह गया। मंचों पर बहस व लेक्चरों का विषय बन कर बुद्धि विलास का साधन बन गया। उन्हें जीकर उदाहरण बन कर आगे बढ़ने का कोई भी मार्ग नहीं सुझाया और जो मुट्ठी भर मानव सुझाना भी चाहते हैं उन्हें प्रचार की व्यवसायिक अर्थव्यवस्था की राजनीति मुख्य धारा में आने ही नहीं देती।
यही है सब समस्याओं का मूल।
सुपात्र को असहयोग मानव की भूल।
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ