सत्यता से व योग्यता से हमेशा लोगों को भय लगता है व घबराहट होती है। जब तक योग्यता व सत्य को सही सम्मान व स्थान नहीं देंगे लोग व देने का उद्यम नहीं सीखेंगे तब तक वो प्रकृति के काम में दखल देने वाले असुर ही रहेंगे।
जो क्षमता व योग्यता किसी व्यक्ति विशेष को मिली वो प्रकृति का ही चुनाव है। लोग यह सत्य नहीं जानते चाहे वो कितने ही विद्वान गुणी व धनवान हों कि सत्य सबसे अधिक उदार है वो आपका ही कल्याण चाहता है और इसी हेतु अपने को प्रस्तुत करता है। पर लोग समझते हैं कुछ लेने आया है या कुछ फायदा उठा लेगा। इस भाव व अहंकार के कारण वो अपना ही नुकसान करते हैं।
एक प्रश्न सदा खटकता रहा मन में कि भारत में इतनी योग्यता व दैवीय शक्ति होने के बाद भी इतनी कुव्यवस्था व भ्रष्टाचार क्यों है तो जब दुनियां में बड़े-बड़े नामी नेता व अपने-अपने विभाग के अधिकतर वरिष्ठ गणमान्य व्यक्तियों से मिलना हुआ, उनकी मानसिकता समझी और उसका गौर से अध्ययन किया तो पाया कि वो दूसरों की योग्यता की सीढ़ी पकड़ ही ऊपर चढ़े और योग्य सुपात्र को किसी के सामने आने ही नहीं दिया, गुलाम की तरह प्रयोग किया। जोड़-तोड़ से ही गद्दी पाकर ऊंचे बैठ अपने ही अहंकार को तुष्ट किया।
पर इस प्रकार चढ़ने वालों का अन्त सुखद हो ही नहीं सकता क्योंकि उनसे मानवता की कोई भलाई नहीं होती। जब तक कोई सत्य योग्यता को उचित सम्मान व स्थान नहीं देगा संघर्ष चलता रहेगा। जो सत्य योग्यता का प्रयोग अपने ही स्वार्थों के लिए करते हैं वही देश के अहित का मूल कारण है। जो शीर्ष स्थानों पर अपनी ही सत्यता कर्मठता योग्यता व नित्यता से पहुंचते हैं उन्हें कोई भय नहीं होता पर उनके चारों ओर के चमचे सत्य योग्यता को उनके सामने आने ही नहीं देते ताकि उनकी चांदी कटती रहे।
समय उनको कभी माफ नहीं करेगा। ऐसे व्यक्ति जो सत्य योग्यता को नकारते हैं, देश की प्रगति में बाधक हैं वो अपनी तरह के देशद्रोही हैं यही सत्य है। पर सत्य यही है कि अन्त में जीत सत्य की ही होती है।
सत्यमेव जयते
- प्रणाम मीना ऊँ