सत्य सनातन धर्म : नित्य निरन्तर शाश्वत विधान

सत्य सनातन धर्म : नित्य निरन्तर शाश्वत विधान

हे मानव! यह सत्य धर्म जान
संसार में सब कुछ नश्वर है क्षणिक है। उत्पन्न होना, पूर्णता पाना, कुछ और उत्पन्न करना, प्रकट करना और अन्तत: लुप्त हो जाना। सब देखा-समझा व अनुभव भी किया जा सकता है। इस नश्वर संसार से परे एक और संसार है। जिसका आभास व ज्ञान केवल सनातन धर्म में पूर्णतया स्थित, स्थितप्रज्ञ आत्मवान मानव को होता है। इस ज्ञान का रहस्योद्घाटन व सत्य स्थापन सर्वोन्नत आत्मज्ञानी ही कर पाता है। यह पराज्ञान की पूर्णता है। ब्रह्माण्ड प्रकृति व जीव का सनातन वैज्ञानिक सत्य है। श्रीकृष्ण इस अपरा व परा ज्ञान-विज्ञान के पूर्ण मर्मज्ञ हुए। तभी तो सर्वकला सम्पूर्ण कहाए।

धार्मिकता या अंग्रेजी शब्द, religion, सनातन धर्म की व्यापकता को कदापि परिभाषित नहीं कर सकते, न ही बखान सकते हैं क्योंकि मानवाकृत धार्मिकता या रिलीजन सनातन धर्म से सर्वथा भिन्न है। धार्मिकता, religion, शब्द से श्रद्धा व आस्था शब्द का भाव भासित होता है। श्रद्धा या आस्था टूट सकती है, परिवर्तित हो सकती है। दुविधा या संशयों में डाल सकती है। श्रद्धा या आस्था दर्शाने की विशेष कर्मकाण्डी विधियाँ बदली भी जा सकती हैं।

सनातन धर्म पालन उस कर्म-विधान का द्योतक है जिसे न तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है, न ही बदला जा सकता है। जैसे जल से तरलता, अग्नि से ऊष्मा, वायु से गति, धरती से गुरुत्वाकर्षण और आकाश से विस्तार कभी भी अलग नहीं किया जा सकता उसी प्रकार सत्य सनातन धर्म चेतन तत्व से भिन्न नहीं किया जा सकता है। सत्य सनातन धर्म का पूर्णतया पालन करने वाला मानव ही पूर्ण चैैतन्यता को अवतरित कर परिलक्षित करने में सक्षम होता है। यह एक महान अन्तर है मानवाकृत धर्मों व सत्य सनातन धर्म में।

मानवाकृत धर्म अनेकों हैं पर सत्य सनातन धर्म एक ही है। मानवाकृत धर्मों को पढ़-पढ़कर भी बताया जा सकता है पर सनातन धर्म को केवल जीने वाला और अनुभव करने वाला ही बता सकता है और समझने वाला भी जागरू क और पूर्ण समर्पण में हो तभी बात बनती है, गीता प्रवाहित होती है धार्मिक पुस्तकें नहीं।

सनातन धर्म जीव का नित्य शाश्वत, सही रूप में वास्तविक धर्म कर्म है। इसको मानवाकृत या किसी सम्प्रदाय विशेष की उत्पत्ति या धरोहर मानना भ्रामक है। सनातन धर्म समस्त विश्व के लिए ही नहीं बल्कि समस्त सृष्टि उसकी समस्त कृतियों जड़-चेतन सभी के लिए है क्योंकि सबके मूल में, स्रोत में इसी सनातन सत्य की अजस्र धारा प्रवाहित है।

प्रणाम का कर्म है सनातन धर्म का सत्य ज्ञान बताकर सभी संशयों का भेदन कर जागृति का प्रकाश कर सभी भ्रामक विचारधाराओं का प्रवाह सत्य की ओर उन्मुख करना। क्योंकि यही प्रत्येक जीव की वृत्ति, गति व नियति है कि सत्य जानने या सत्य तक पहुँचने की अग्नि उसमें सदा प्रज्वलित है। यदि मायावी झंझटों में दब भी जाए तो किसी सत्य सानिध्य सत्संग से पुन: जागृत हो अपना मार्ग जानने या जीने का पुरुषार्थ करे।

यही है सत्य सनातन – धर्म – शक्ति जो सनातन सत्य को कभी भी लुप्त नहीं होने दे सकती। तभी तो शाश्वत नित्य निरन्तर है सनातन धर्म! जिसका आधार सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश है। सृष्टि के सदा उन्नत होने और मानव के रूपान्तरित होने का प्रमाण यही सनातन सत्यधर्मिता ही तो है।
यही प्रणाम का सबको प्रणाम है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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