श्री विष्णु अवतार की विडंबना-2

श्री विष्णु अवतार की विडंबना-2

हे मानव! तू नहीं जानता कैसे अर्जित की जाती है एक ऐसी मनोहारी मुस्कान जो मूर्तियों और चित्रों में भी जीवंत होकर सदा राह सुझाती है। जब तुम उसके समक्ष होकर अपने कष्ट गिनाते हो तो वह रहस्मयी मुस्कुराहट जैसे कह रही होती है कि तूने तो कुछ भी नहीं झेला जो मैंने झेला है तू इतने से ही घबरा गया। जरा सोच अवतारों को तू ही तो कष्ट देता है, नकारता है, ध्यान की तपस्या देता है पर कालांतर में उन्हीं के मूर्तिरूप के सम्मुख हो शान्ति और वरदान की अपेक्षा रखता है। ले सुन श्री विष्णु की नियति की गाथा :-
जीवन से तप-तप कर जीना, अपनों से मिल-मिल के बिछुड़ना
काम निकलने पर मुँह मोड़ना, आराम से एक पल में दिल तोड़ना
सब सिखा गया वैराग्य की नीति
कर्म की रीति अंतर्मन के ज्ञान की भक्ति
मोह माया की सत्य, प्रेम व प्रकाश में परिणति
कोमा में सोए लोग क्यों टिके रहते हैं
चिता पर जलते शव क्यों चुप रहते हैं
जिसे जीवन ही चिता बन जलाए, तपाए, सताए
वे ही तो रज-तम-सत सबसे परे ही परे जा पाए
ऐसा ही आत्मवान मानव गुणातीत हो
बोलने वाला शव विष्णु अवतार कहाए
सबसे बड़े अंतिम सत्य को पाकर मानव शव होता है
पर इस सबसे बड़े सत्य को पाकर जो लीला कर पाए
वही लीला पुरुष तो पूर्ण अवतार होता है
अपनी लीलाओं से वह सबका मनोरंजन तो कर पाता है
पर उसके सत्य का मौन कौन सुन पाता है
हाँ, सुन पाता है वही कोई अर्जुन
जो पूर्णतया हताश निराश विषाद में
हृदय विदीर्ण कर उसके समक्ष रोता है
तब जो भी वह शव बोलता है वह ही तो गीता होता है
ऐसा एक युग में बस एक बार होता है
संभवामि युगे-युगे हो
मानव अवतार बोलता है
जीवन से ही तपकर, जलकर
सर्वज्ञानवान सर्वशक्तिमान सर्वविद्यमान होता है
ब्रह्माण्डीय रहस्य खोलने को विष्णु अवतार होता है
जिसे लोग कहे हैं शेष शैय्या पर सोता है
शायद कोमा में होता है और
एक युग में एक बार ही आँखें खोलता है
मनु की आँख होता है
शव में ‘ई’ संयुक्त कर शिव-शक्ति पा अवतरित होता है
प्रकृति की कठोरतम परीक्षाओं को उद्यत होता है
मंद-मंद मुस्कुराता सबका सखा होता है
हे राम, हे कृष्ण, हे गोपाल औ’
मुरली मनोहर होता है
वो तो सबका और सबके लिए होता है
यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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