विष्णु की विडम्बना : भाग- 2

जीवन से तप-तप कर जीना
अपनों से मिल-मिल कर बिछुड़ना
काम निकल जाने पर मुँह मोड़ना
आराम से एक क्षण में दिल तोड़ना
सब सिखा गया वैराग्य की नीति
कर्म की रीति अन्तरमन के ज्ञान की भक्ति
मोह माया की सत्य प्रेम प्रकाश में परिणति
कोमा में सोए लोग क्यों टिके रहते हैं
चिता पर जलते शव क्यों चुप रहते हैं
जिसे जीवन ही चिता बन जलाए तपाए सताए
वो ही तो रज तम सत सबसे परे ही परे जा पाए
ऐसा ही आत्मावान मानव गुणातीत हो
बोलने वाला शव विष्णु कहाए
सबसे बड़े अंतिम सत्य को पाकर ही तो
मानव शव होता है
पर इस सबसे बड़े सत्य को पाकर
जो लीला कर पाए वही…
वही लीला पुरुष तो पूर्ण अवतार होता है
अपनी लीलाओं से वो सबका मनोरंजन तो कर पाता है
पर उसके सत्य का मौन कौन सुन पाता है
हाँ सुन पाता है वही कोई अर्जुन
जो पूर्णतया हताश निराश विषाद में
हृदय विदीर्ण कर उसके समक्ष रोता है
तब जो भी वो शव बोलता है
वही तो गीता होता है
एक युग में बस एक बार ऐसा होता है
जब शव बोलता है
संभवामि युगे-युगे हो मानव बोलता है
जीवन से ही तपकर जलकर
सर्वशक्तिमान सर्वज्ञानवान व सर्वविद्यमान होता है
ब्रह्माण्डीय रहस्य खोलने को
विष्णु अवतार होता है
जिसे लोग कहते हैं शेष-शैय्या पर सोता है
शायद कोमा में होता है
जो एक युग में एक बार ही आँखें खोलता है
मीना की आँख होता है
शव में ई संयुक्त कर शिव शक्ति पा अवतरित होता है
प्रकृति की कठोरतम परीक्षा को उद्यत होता है
न हँसता है न रोता है मंद-मंद मुस्कुराता है
सत्य की परिणति होता है प्रेम की अनुभूति देता है
सबका सखा होता है दूसरों के हर भाव जीता है
प्रगति के बीज बोता है
न तेरा न मेरा वो तो सबका होता है
सबके लिए होता है
जीना-मरना जिसके लिए समान होता है
बस अनन्यभाव का मूर्तरूप होता है
हे राम हे कृष्ण हे गोपाल
औ’ मुरली मनोहर होता है
यही सत्य है !!
यहीं सत्य है
!!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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