ब्रह्माण्ड विपरीत शक्तियों का पुंज है तभी तो अविनाशी है नित्य है नित्य गतिमान है प्रगतिशील है।
शैतान – भगवान
राक्षस – देवता
दुष्ट – सज्जन
नर-नारी, मूर्ख-विद्वान निरंतर संघर्ष दौड़ होड़ लगी थी, लगी है और लगी रहेगी। पूरा ब्रह्माण्ड, फिर ग्रह फिर धरती फिर देश शहर समाज घर फिर तू बिंदु सा, उस घर का एक प्राणी मात्र फिर तेरे अंदर भी वही सब विपरीत शैतान अपने अंदर के शैतानों को पहचान, मार तब तू भगवान होगा।
बाहर के शैतानों का ब्रह्मा स्वयं उत्तरदायी है, तू क्यों चिंता करता है? कहाँ तक पहचानेगा बाहर के राक्षसों को, कभी न पहचान पाएगा बाहर के शैतानों को।
क्यों जीवन व्यर्थ करता है उनको समझने में, शैतानों को पहचानने में जीवन लगा दिया तो जो देवता आएँगे जीवन में उन्हें पहचान ही न पाएगा तू और वंचित रह जाएगा उन स्वर्णिम अवसरों से जो स्वयं ही स्वत: ही मनसा-वाचा-कर्मणा सत्यमार्गी मानव के रास्ते में आ जाते हैं।
जान सके तो जान तेरे
मन में
छुपकर बैठे हैं
तेरे
भगवान
- प्रणाम मीना ऊँ