अपने उत्थान का आप कोई भी रास्ता अपनाएँ!
उससे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा
योग भक्ति प्रेम कर्म कुछ भी कोई भी धर्म पर चलें
लक्ष्य :
तो एक ही है पर अगर आपकी
अपनी रचनाशीलता रुक जाती है
कुछ नया करना या बनाना रुक जाता है
तो उत्थान भी रुक जाता है।
सृष्टि का यही नियम है
सब कुछ करो – प्रभु की पूजा जैसे अर्पण
सृजन :
प्रकृति रोज नया कुछ रचती है
तभी अविनाशी है
प्राप्य है उसी से मिलना है
वही पाना है, वहीं जाना है
उसी से एकाकार होना है
यही सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ