अपने आप से कुछ बात
हे मानव!
प्रणाम में बहुत लोग आते हैं सुनते हैं गुनते हैं। कुछ लोग तो सालों से साथ हैं सीखते हैं समझते हैं बार-बार प्रश्न करते ही रहते हैं। बहुत अच्छा है। प्रणाम में उनका विश्वास भी है, आसपास रहते हैं, पूरी ऊर्जा लेते हैं। अपना काम सांसारी भी करते हैं, प्रणाम का भी कार्य करते रहते हैं। खूब ज्ञान-ध्यान लेते हैं बुद्धियों की तुष्टि, बुद्धि विलास में रमते ही रहते हैं।
अपने अनुभव से प्रणाम का सच खूब समझते हैं प्रणाम को सही भी मानते हैं। अपने को जानकर अपना रूपान्तरण भी चाहते हैं, बहुत आदर मान भी दिखाते हैं, पर मन बहुत उदास सा हो जाता है कभी-कभी। मन का एक कोना बहुत रीता-रीता सा है मेरा। सबके बहुत से प्रश्न होते हैं-कभी भी ना खत्म होने वाले प्रश्न। जिनके उत्तर बस देते ही रहो। अपने पर काम करके जीकर उत्तर लेने का उद्यम नहीं है चाहे जितना भी बता दो समझा दो सिखा दो। बार-बार एक ही बात दोहराओ फिर भी बड़े आराम से भूल जाते हैं या भूलने का नाटक करते हैं। मीना तो है ही।
मीना की बुद्धि को बार-बार थकाते हैं। प्रश्नों केबटन को दबातेे रहो, बुद्धि को निचोड़ते रहो, प्रश्नों के मनचाहे उत्तर लेते रहो, बार-बार बुद्धि के व बौद्धिकता के स्तर पर लाकर पटकते रहो पर करो अपने ही मन की, अपनी ही प्रकृति की ! क्यों उतरती हूँ बार-बार उनकी बुद्धि वाले धरातल पर! शायद इसीलिए कि अबकी बार तो समझ ही जाएँगे और आगे बढ़ेंगे अपने ऊपर काम कर रूपान्तरण पथ पर, उत्थान के मार्ग पर अग्रसर होंगे। एक मातृभाव सा छा जाता है। इसी आशा में एक दीया जलाए बैठी हूँ प्रणाम का। क्या इतनों में एक भी ऐसा हो पाएगा जो मेरे आत्मस्वरूप से मौन संवाद कर ले। आत्मा से आत्मा के संवाद की सरलतम विद्या में आ जाए।
मौन की पूर्णता में पूर्ण शान्ति में
पूर्ण निस्तब्धता पूर्ण नि:शब्दता
एकदल हलचल रहित चैतन्यता
मनोबुद्धि शरीर पूर्णतया शान्त
पूर्ण विश्राम में
आत्मा से आत्मा का संवाद घटित होना
न कु छ कहना न सुनना न समझना
भाव लहरियाँ एक परम ऊर्जा से स्पन्दित
सभी दुविधाओं संशयों से परे करे आनन्दित।
यही सत्य है
यहीं सत्य है !!
- प्रणाम मीना ऊँ