आप ही अक्षर ब्रह्म आप ही तत्व बीज आप ही अविनाशी आप ही विनाशी आप ही बुद्धि आप ही कुबुद्धि आप ही शैतान आप ही भगवान मानव बुद्धि सुर में तो भगवान सुर में नहीं तो शैतान यही सत्य है !!
हमें अपनी संवेदनशीलता विकसित करनी होगी जहां यह हमारी संवेदनशीलता बन जाती है
और हमारी क्षमता को बढ़ाएं जहां यह हमारी क्षमता बन जाती है।
मानव यहाँ भगवान है। वह सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान हो सकता है
और सर्वज्ञ ..... सोचा शक्ति ........
यही सच्चाई है।