प्रेम सींचे आत्मवृक्ष

जो दिखे नहीं फिर भी दीखे
पाँचों तत्वों से पाँचों इन्द्रियों से
झलके सृष्टि की हर छटा से
वो प्यारा-प्यारा मधुर-मधुर अहसास
जिसके आगे होते सारे के सारे
अहसास फीके-फीके से
जो न टिके न रुके न झुके कहीं भी
पर बन स्मरणीय स्मृति की नाद
गूँजे घट भीतर भिगोता गात
सींचता प्रेम-वर्षा से आत्मवृक्ष
कभी भी न रीते
संसारी मायावी जीवन जीते-जीते
भागदौड़ में न जाने कब हो जाते
नयन भीगे-भीगे
तो जान जाना नयन नहीं होते तब
कृष्ण के भी सूखे
स्मरण के तार से बँधे
तेरे ही आत्मप्रेम से बिंधे
युगों युगों से बस यही रूप तो
स्मरण का नहीं बदला है
युगों युगों से बस यही रूप तो
स्मरण का नहीं
बदला है
इसीलिए तो इसका न कोई
अदला-बदला है
न कोई अदला-बदला है
तुम्हारा ही अंश
प्रभु का वंश
मीना ऊँ
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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