प्रणाम मानवता का सेवक : मानवता के गुण तत्व का पोषक

प्रणाम मानवता का सेवक : मानवता के गुण तत्व का पोषक

केवल दृष्टामात्र हूँ। युगचेतना से संयुक्त उसी का भाव बीज रोपण करने को तत्पर। भागीदार तभी होती हूँ जब कोई अर्जुन संशय, दुविधा या विषाद काटने या मार्ग सुझाने हेतु प्रश्न करता है। प्रत्येक सत्य, प्रेम व कर्मयोगी की सहयोगी हूँ। आज दृष्टा बन देख रही हूँ संगम होने वाला है प्रयागराज जैसा। युवा पीढ़ी सब जानती है, जान रही है और विकृतियों को दूर करने के लिए गंगा धार है। चिन्तन, समाधान व सही मार्गदर्शन को उद्यत सभी प्रबुद्धजन अदृश्य सरस्वती धारा के स्वरूप हैं और पतित-पावनी, मोक्षदायिनी यमुना की प्रतीक नारियों की अद्भुत सहभागिता इसी शुभ संगम का संकेत ही तो है। इन तीनों का, प्रबुद्ध देशप्रेमियों के सही चिन्तन व दिशा निर्देश का, कर्मठ युवा ऊर्जा का व तेजोमयी मातृशक्ति का समुचित समन्वय हो जाए तो नवयुग का सुप्रभात दूर कहाँ।

आज आध्यात्म व राजनीति शब्द सुनते ही भवें टेढ़ी हो जाती हैं, नाक सिकुड़ने लगती है। ये दोनों शब्द ही अपनी महिमा, गरिमा व श्रेष्ठता सब खो चुके हैं। इसलिए जब तक इनकी गरिमा पुन: भावी पीढ़ी और विश्वकल्याण के सूत्रधार, श्रेष्ठ मानव स्थापित कर सकें सबसे विनम्र आग्रह है कि आत्मीयता व आत्मिकता का सही अर्थ समझ इसकी साधना स्वयं करें। अपना सत्य जानें। आत्मिकता शब्द उस आत्मिक बल का उत्कर्ष है जिसे प्रत्येक महान संकल्पधारी को महान उद्देश्यों की पूर्ति व पूर्णता के लिए पाना है। आत्मीयता शब्द उस पूर्ण पवित्र प्रेम का प्रतीक है जो एक जैसी सोच वालों के साथ पावन सम्बन्ध जोड़ देता है। ऐसा पावन प्रेम जो शाश्वत है और कभी भी व्यथित या असन्तुष्ट नहीं करता। ऐसी आत्मीयता, जो ईर्ष्या-द्वेष या होड़ के भावों से ग्रसित नहीं होती वही एक ऐसी शक्ति-स्रोत बन सकती है, ऐसी शक्ति धारा बन सकती है जो समस्त अपूर्णता, कुरूपता और विद्रूपता को बहा दे।
प्रणाम यही आह्वान करता है कि नर बने नारायण नारी बने नारायणी। दो शब्द हैं श्रीमान् व श्रीमती – श्रीमान् पूर्णतया संभ्रान्त नर जो नारी को मान-सम्मान दे और ऐसे कर्म करे जिससे उसका भी मान बढ़े। अभद्र व्यवहार व अशोभनीय शब्दों का प्रयोग कदापि न करे तभी तो उसे सही श्रीमती- अच्छी मति, शोभित मति, लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मति मिलेगी। ऐसी लक्ष्मी जो सबका कल्याण करे। श्रीमती का तात्पर्य है सही मति जो सही मति दे, सही मार्ग सुझाए। तो नारी सच्ची साथी, सहभागिनी बने तभी तो सही जीवन का पथ प्रशस्त हो पाएगा। नारियों को भी समझना होगा व्यक्तित्व को शोभामय व गरिमामय बनाने हेतु शरीर को अलंकृत करें, सजाएँ-सँवारें पर दूसरों को आकर्षित या प्रभावित करने हेतु कदापि नहीं। शरीर मन्दिर की भाँति शोभायुक्त हो, सौन्दर्यमय हो जिसमें दूषित व कलुषित भावों का कोई स्थान न हो, पवित्रता ही निवास करे। तभी तो प्रभु आएँगे, प्रभुता स्थापित होगी। बड़प्पन दिखाई देगा जो प्रभु का ही गुण है सत्यम् शिवम् सुन्दरम् है।
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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