हम सभी पाँच तत्वों से बने हैं, इनमें से चार – वायु जल अग्नि और ईथर सार्वभौमिक
हैं और पूरे ब्रह्मांड में विभिन्न रूपों में पाए जाते हैं, जबकि यह केवल पृथ्वी तत्व है, जो हमारे ग्रह का पंच-महाभूत पूरा करता है – सृष्टि के लिए आवश्यक हैं पांचों तत्व।
आज पृथ्वी दिवस है… लेकिन वास्तव में इस ग्रह पर हमारे लिए, प्रतिदिन ही पृथ्वी
दिवस होना चाहिए।
भारतीय संस्कृति ने हमेशा प्राकृतिक ऊर्जा को देवताओं के रूप में माना है और पृथ्वी
को माता के रूप में देखा जाता है। पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है जो हर ऊर्जा को, सृजन के लिए, सटीक अनुपात में आकर्षित करता है, चाहे सूर्य की रोशनी हो या चांद की चांदनी। पृथ्वी जीवन का उद्गमस्थल है।
परम्परागत रूप से, भू देवी पृथ्वी की अध्यक्षता करने वाली देवी हैं। उसके विभिन्न रूप हैं जो उसकी अद्वितीय प्रकृति और सृजन में उसकी महत्ता को परिभाषित करते हैं।
पृथ्वी तत्व धैर्य का मूर्तरूप है – धैर्य, संतोष, अनिर्णयात्मकता और निष्पक्ष प्रेम को
स्वीकारती है और सभी को गरिमा से शोभा से स्वीकार है – हर कोई उसके लिए समान है, चाहे वह संत हो या पापी, जड़ हो या चेतन जैसा भी हो वह सबको उनकी दुर्बलताओं और दोषों सहित प्रेम करती है। वह हर किसी को आनंद और विनग्रता के साथ लेती है और बिना विद्वेष के उनके अस्तित्व का बोझ ढोती है। वह सब कुछ देती है, यहां तक कि एक नया जन्म भी और सभी को अपनी मनमानी इच्छा के अनुसार खेलने देती है।
फिर भी किसी ने उसे कभी धन्यवाद नहीं किया ! पर वह बिना शिकायत प्यार देखभाल और देती चली जाती है।
इस दिव्य पृथ्वी तत्व के लिए सबसे अच्छी श्रद्धांजलि है कि उसकी अनमोल भेंटों के
प्रति आभार प्रकट करें और अपने अंदर उसके महान गुणों को आत्मसात करने का
ईमानदार प्रयास करें। हर मां प्रसन्न होती है जब उसके बच्चे उससे सीखते हैं। एक मां केवल देना जानती है और बदले में कभी कुछ नहीं मांगती है!
हमारी संस्कृति जीवन के तीन ऋणों को निर्धारण करती है। हमें इस ग्रह को छोड़ने से
पहले जिनका वापस भुगतान करना आवश्यक है। पूर्वजों या माता-पिता के प्रति ऋण उन्हें सेवा देकर लौटाया जाता है, गुरुओं और ऋषियों के प्रति कृतज्ञता भार को सत्य प्रेम कर्म और प्रकाश के उद्देश्य के लिए कर्तव्य कर्म करने से कम किया जाता है और देवताओं के प्रति ऋण उनकी विशेषताओं को अपनाकर उसी के अनुसार कर्म करके भुगतान किया जाता है। मानव जीवन तभी सार्थक है जब हम प्रकृति के उद्देश्य को बढ़ाने के लिए अपनी सभी मानसिक शारीरिक और भावनात्मक क्षमताओं का अधिकतम उपयोग करते हैं। हमें यह अनुभव करने की आवश्यकता है कि हम एक स्रोत से हैं और सभी एक से ही पांच तत्वों से बने हैं। हमें अपने अस्तित्व में इन तत्वों की विशेषताओं को विकसित, चमकाना और परिष्कृत करना होगा।
COVID-19 के इन दिनों में, जब प्रकृति ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह सर्वोपरि
है, आइए सामूहिक रूप से पृथ्वी दिवस को प्राकृतिक और सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में ले जाने का कर्म करने का संकल्प करें जो प्रकृति के नियमों के अनुसार हो।
जीवन की यात्रा अव्यक्त तत्वों से ही मूर्त रूप में प्रकट होती है और फिर अव्यक्त में
वापस हो जाती है। हम इस दिव्य ग्रह पर अपने मानव स्वरूप के योग्य हों।
- प्रणाम मीना ओम