मानव मन की संकीर्णता व
बुद्धि की क्रूरता
न जीने दे न मरने दे
न खुद को न किसी और को
पर जिसके साथ कृष्ण चेतना का हाथ
वो क्यों करे प्रतिकार
क्योंकि वही नकारात्मकता
वही आतंकवाद
वही तो बनता उत्थान का आधार
प्रभु तेरा आभार
देता सदा वृश्चिक दंश
दर्द की उठा लहरें
बढ़ा देता रक्त संचार
जो खोल देता गाँठें मन की अनेक
औ’ देता बुद्धि विस्तार
बुद्धि विस्तार अपार
जितना आतंक होता पूर्ण
उतना ही पूर्ण होता
अपूर्णता का संहार
आतंकी का कर्म आतंक
आतंकित का कर्म अनन्त
आतंकी आतंक करके भी रहता चिंतित
कैसे करूँ और आतंकित
पर आतंकित पीड़ा सहकर
नकारात्मकता को नकार कर
चल पड़ता द्विगुणित शक्ति से
उस पूर्णता की ओर
जिसे जानकर पाकर
ओ मेरे नंदकिशोर
मन होता भावविभोर
पूर्ण विभोर
राम से कृष्ण तक सभी अवतारियों ने
मारा मरवाया मारा मरवाया
आतंकियों को आक्रांतियों को
कंस और रावणों को
अन्य युगों में हुए आतंकी बाहरी
कलियुग में घर में ही होते
पर मेरा अवतार रूप
साथ रखता पालता-पोसता
बारम्बार प्राणित करता
राक्षसी प्रवृत्ति वाले स्वरूपों को
सत्य कर्त्तव्य कर्म और प्रेम से
पूर्ण न्याय करना होता है
कलियुग में पूर्णता के विधान से
अपने ही प्राण से
यही सत्य है
यहीं सत्य है
- प्रणाम मीना ऊँ