परम गुरु

हे मानव ! वेदों का व शास्त्रों का सर्वोत्तम व सर्वश्रेष्ठ ज्ञान यही है कि प्रत्येक मानव के हृदय में ही परम निर्देशक व परम गुरु छुपा हुआ है। वो ही सारा अज्ञान व अंधकार काट कर स्वयं से साक्षात्कार कराकर जीवन को प्रकाश से भर देता है।

सब सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश के बारे में पढ़ने व सुनने से जान तो लेते हैं ज्ञान भी प्राप्त कर लेते हैं पर इस माना मार्ग माने हुए मार्ग पर कितनी प्रगति करते हैं इसी में सारा का सारा रहस्य छुपा है। यह प्रगति होना तो केवल मानव स्वयं ही जान सकता है। जो भी ज्ञान अर्जित किया है उसे जीकर और अनुभव की कसौटी पर कसकर ही सत्य को जाना और पाया जा सकता है।

ज्ञान यदि बहस करना या केवल आन्तरिक संवाद करना ही सिखा रहा है तो यह आलस्य या समय नष्ट करने को दर्शाता है। सच्चा ज्ञान केवल कर्म करना और अपने को सत्यता से परखने का साहस सिखाता है। अपने ऊपर काम करके अपने को जानने से अधिक आनन्ददायी कुछ है ही नहीं। सारे ज्ञान का निचोड़ व उद्देश्य ही है कि अपने को जानो व अपना सत्य जानो।

पूर्ण सत्य पूर्ण प्रेम व पूर्ण कर्म के मूर्तरूप में परमेश्वर हमारे सामने, समय-समय पर हर युग में कोई न कोई उदहारण अवश्य ही अवतरित करते हैं। जिसे हम अपना पूज्यनीय उदाहरण स्वरूप जानकर व मानकर अपनी अधोमुखी प्रवृतियों को अपनी ऊर्जाओं को उर्ध्वगति की ओर उन्मुख कर सकें और प्रभुताई, बड़प्पन से अपने को एकाकार कर सकें। उदाहरण तो सदा ही हमारे सामने होते हैं ताकि हम उसका मार्गदर्शन लेकर अनुसरण कर उच्चतम चेतना से अपना योग कर सकें।

इसके लिए अपने अन्दर एक सुव्यवस्था को लाना होता है। बेतरतीब छोटी से छोटी बात भी इस प्रक्रिया में बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वह आपकी मानसिक स्थिति व उत्थान को दर्शाती है। ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसकी कोई भी उपयोगिता न हो न ही कुछ ऐसा है जो दुर्लभ हो। ऐसा दुर्लभ जिसे प्राप्त करने की क्षमता मानव में नहीं हो। मानव सर्व सक्षम है।

जीवन सदा ही अवसर देता है चुनाव का दौर उस चुनाव के लिए मानव स्वतंत्र है। जीवन में हमेशा दोराहे आते हैं-
  सच और झूठ का
  चढ़ाव और उतार का
  उन्नति अैर अवनति का
  प्रकाश और अंधकार का
  उर्ध्वगति और अधोगति का


तुम कौन सा मार्ग अपनाते हो इसकी तुम्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता है। चुनाव केवल तुम्हारा है। जब तुम आगे बढ़ना बन्द कर देते हो तो नीचे गिरने लगते हो क्योंकि जब तक जीओगे गति तुम्हारी नियति है। ऊपर या नीचे या इधर उधर भटकना। इसका कारण तुम स्वयं ही हो। आगे बढ़ने में ही तुम्हारी सद्गति है। रुकने में दुर्गति है। चलना ही जि़न्दगी है।

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
काँटों पे चलके ही मिलेंगे साए बहार के
नैन भीगे भीगे से
मन भी भीगा भीगा सा
पर है,
पूरी तरह प्रभु प्रेम पगा सा
प्रभु प्रेम ही मार्ग दिखाए
वो ही वो ही पार लगाए।
सत्यमेव जयते

यही सत्य है !!
यहीं सत्य है
!!

  • प्रणाम मीना ऊँ

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