नवयुग के सुप्रभात-सा प्रणाम अभियान

प्रणाम एक अभियान है मानवता को अपनी सही पहचान बताने का। बाकी कार्य प्रकृति स्वत: ही करा लेगी। अध्यात्म को अपनाया जाता है अच्छा इंसान बनने के लिए। अच्छे इंसान की परिभाषा क्या है? ऐसा इंसान जो तन मन से पूर्ण स्वस्थ हो जिसकी आत्मा आज़ाद हो-सबकी सेवा करने के लिए, सबको प्रेम करने के लिए।

अध्यात्म को जीवन में उतारा जाता है ताकि उस परमशक्ति से जुड़कर, शक्ति प्राप्त कर उस शक्ति का प्रयोग मानवता की भलाई में लगाया जाए। प्रवचनों व उपदेशों का भी अपना महत्व है। मगर उसको अपनाकर साधना में परिवर्तन न किया तो प्रगति की गति बहुत धीमी रहती है और तब तक समय बहुत आगे बढ़ जाता है।

अब समय है कर्म करने का। क्योंकि रास्ता तो सब मनीषी बता ही गए हैं उस पर चलने की बात है। भारत में इस शक्ति का उदय हो गया है बस बात है उससे जुड़कर सहयोग करने की। जब शक्ति का अवतरण होता है तो जरूरी नहीं कि सारी शक्ति धार्मिकता के नाम पर ही लगाई जाए। देश के उत्थान के लिए सारे ही क्षेत्रों में उन्नति हो चाहे वह आर्थिक हो, सामाजिक हो या राजनैतिक तभी सम्पूर्ण प्रगति होगी।

इसके लिए यह जानना है कि हमारी व्यक्तिगत क्षमता किस क्षेत्र में जाने की है। प्रणाम इसी भाव को लेकर चल रहा है कि कोई भी क्षेत्र बड़ा-छोटा या ऊँचा-नीचा नहीं है जो जहाँ भी है वहीं अगर अपने जीवन में अध्यात्म की शक्ति लाकर कुछ पक्के नियम बना ले तो ऐसा हो नहीं सकता कि काम न बने। आवश्यकता है तो बस धैर्य की और सत्यकार्य के शक्ति की।

महात्मा गांधीजी ने महामंत्र दिया असहयोग का। हमें प्रण करना है कि हम असहयोग करेंगे प्रत्येक उस बात से जिसने भारत की जड़े खोखली की हैं। चाहे वह भ्रष्टाचार हो, नारी अपमान हो, गलत राजनीति हो, अनुचित शिक्षा-प्रणाली हो, धार्मिक स्थलों की कुव्यवस्था हो, धन का घिनौना प्रदर्शन हो, कुरीतियाँ हों। हम भ्रष्ट व्यवस्था के भागीदार नहीं बनेंगे।
हमको प्रत्येक अपूर्णता से असहयोग करना है। आवाज उठानी है हर उस काम के खिलाफ जो सत्य नहीं है। झूठ, बनावटीपन, खोखलेपन को पूरी तरह नकारना है और जो यह सब कर रहे हैं उनको पूर्ण मानसिक व शारीरिक शक्ति देनी है। मन से जुड़कर एक लहर उठानी है।

प्रणाम एक आंदोलन है और आंदोलन के प्रारम्भ में कठिनाइयाँ अवश्य आती हैं। मगर उनसे घबराना नहीं है झुकना नहीं है, आगे बढ़ना ही होगा और इसकी शक्ति मिलेगी हमें तीन महामंत्रों से-कर्म ही धर्म है, प्रेम कभी विफल नहीं होता और सदा सत्य ही विजयी होता है। हमें महात्मा बुद्ध व गांधीजी के अहिंसा के पाठ को भी पूरी तरह आत्मसात् करना है। यह जो मैं भारतवासियों से विशेषकर युवा पीढ़ी से बात कह रही हूँ, यह काल के अटल सत्य पर आधारित है। अब भारतवर्ष को उसकी पूर्ण गरिमा जो हमारी विरासत है उस तक पहुँचाना है। इस कार्य के लिए दिव्य शक्ति चाहिए और वह दिव्य शक्ति एकता में ही निहित है। सच्चाई प्रेम व कर्म में ही छुपी है। यह बात मैं सैद्धांतिक तौर पर नहीं कह रही हूँ। मैं पूरा आश्वासन दे रही हूँ कि दिव्य ज्योति का अवतरण हो चुका है जो कि महाकाली की तरह सभी क्षेत्रों से अपूर्णता को मिटाकर ही छोड़ेगी। यह महायज्ञ शुरू हो चुका है। आओ साथ दें, अपने अहम् व स्वार्थ की आहुति देकर।

महात्मा गांधीजी ने भारत के शरीर को आज़ादी दिलाई। अब प्रणाम के माध्यम से भारत की आत्मा को आज़ादी दिलाने की बात है। श्री राम के समय पाप व पुण्य का युद्ध था। श्रीकृष्ण के समय धर्म व अधर्म का युद्ध था। सम्राट अशोक के समय सत्ता विस्तार का युद्ध था। अब युद्ध है झूठ और सच का और युद्ध जीता जायेगा प्रेम के ब्रह्माïस्त्र से।

सत्य विजयी होगा ही, तभी तो सतयुग आयेगा, यही सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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