सं ज्योतिष: ज्योति
यह यजुर्वेद का एक सूक्त है, जो तेज से तेज मिलाकर तेजस्विता बढ़ाने का आह्वान करता है यही तेजस्विता यज्ञ है। प्रणाम की पुकार यही है, आओ सब सत्य-योगियों प्रेमयोगियों कर्मयोगियों सब संगठनों के तेजोमय व्यक्तियों, इस अभियान यज्ञ में एकजुट हो आहुति डालो ताकि भारत माँ की शोभा फिर से स्थापित हो। भारत माँ महान सपूत जननी का गौरव पाए।
जोत से जोत जलाते चलो – प्रेम की गंगा बहाते चलो
एक मीठा प्रेम भरा शब्द ही सबसे बड़ा मलहम है दुखती हुई मानवता के लिए, इतने अवतारी पीर पैगम्बर आए इंसानों को राह बताने, क्या दुख कम हुए? हमने खूब पाठ पढ़े, मंत्र रटे पर कर्म नहीं किया। अब सच्चाई पर सच्चाई से अमल करने की बारी है। कब कहा हमारे सूफी संतों ने कि हमारे मरने के बाद महल दुमहले मंदिर मस्जि़द बनवाना।
इनको सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब खून की जगह प्रेम की गंगा बहाएँगे और जो इस दिशा में सत्य, कर्म व प्रेम की शक्ति से जुटे हैं, उनके हाथ मजबूत करेंगे। भारत की सोच तो पूरे विश्व को साथ लेकर चलने की है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम का संकल्प भारत माँ की ही तो देन है। प्रणाम यह ज्योति जला रहा है जिससे प्रकाश का विस्तार हो।
तेज बढ़ाएँ तेजस्वी, बढ़ाकर निज प्रकाश, दीप से दीप जले तो होए तम का नाश।
ये तम क्या है? अपने को न जानना। आत्मा सबकी एक है, इसे जानना पर मानना नहीं। सबके अंदर वही प्रभु-अल्लाह-ईश्वर है, इसे नकारना ही अंधकार है। भय में कुंठाओं में जीना ही अंधकार है। दूसरे को पीड़ा देकर, दु:ख देकर, शक्ति का प्रदर्शन करना ही तो अंधकार है। असत्य को सत्य जानना ही अंधकार है।
प्रकाश क्या है? सबसे प्रभु जैसा प्रेम। प्रेम ही प्रकाश है, ज्ञान का सद्बुद्धि तथा विवेक से प्रयोग ही प्रकाश है। ज्ञान से विज्ञान से जानी हुई और पाई विद्या का जनकल्याण में प्रयोग ही प्रकाश है। प्रकाश का प्रयोग प्रकाश फैलाने में ही करना है। विनाश अंधकार है। धरती की सुंदरता बिगाड़ना प्रकृति की बनाई सबसे सुंदर मूरत इंसान से नफरत ही अंधकार है।
भारत महान है यह ऐसे ही नहीं कहा गया है, इसके पीछे पूर्ण सत्य है। यह भूमि प्रकृति का चुनाव है, इसकी धरती पर सृष्टि अपनी कृपा बरसाती है। सारे संत, महात्मा, चिंतक, ज्ञानी, ध्यानी, युगदृष्टा और वेद-रचयिता यहीं हुए। तभी तो पाश्चात्य देश आध्यात्म-ज्ञान के लिए सदा भारत की ओर मुड़ते हैं। यहीं से जगद्गुरु परम आत्मा श्रीकृष्ण ने गीता गाई, जो सुगीता है। गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है, पूर्ण ज्ञान-विज्ञान और मानव-धर्म का दर्शन है। गीता जीवन को पूर्णता से जीने की कला है। जिसको जीकर व अनुभव कर जीवन जीने में ही मानव जीवन की सार्थकता है। इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि सही जीवन सत्यता से जीने की तपस्या से बचने के लिए और सही कर्म से जी चुराने के बदले महापुरुषों को पूजने को ही अपना कर्त्तव्य मान लेता है। पूजा को मैं नकारती नहीं हूँ, अवश्य करो मगर साथ-साथ महापुरुषों की कही वाणी को भी जीवन में उतारो, तभी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कृष्ण व्यक्ति का नाम नहीं है। कृष्ण का अर्थशास्त्रों में बताया है सर्वात्कर्षण जो पूर्णरूप से पूर्ण सत्यमय, प्रेममय, सौंदर्यमय, कर्ममय होकर आकर्षित करे। वह व्यक्ति कृष्ण हो जाता है, जो समस्त ब्रह्मïण्ड के रहस्य जान जाता है और परम सत्य को अपनी प्रत्येक क्रिया से धरती पर स्थापित करता है। अपनी वाणी से समय की युग चेतना को शब्द देता है। मानव जीवन की उत्कृष्टïता की चरम सीमा को, मानव जीवन के रहस्य को उजागर कर पाता है। कृष्ण शब्द में जो कृ शब्द है वह सरस्वती का प्रतीक है। सरस्वती जो सभी कलाओं की और विवेक की देवी हैं, जो वाणी में सत्यता का बल देती हैं। कभी सोचा क्यों कृ, क् और र् शब्द कृष्ण में, कुरान में, क्राइस्ट में, कृपा में, क्रास में और कराटे (दृढ़निश्चय की शक्ति) में भी है। कर्म कर में भी तो वही शब्द है।
मानव जीवन एक पर्व है, आओ, सब मिलकर इस पर्व को मनाएं एक दूसरे के जीवन को सुंदर बनाएँ। आलोचना करने की अपेक्षा जो प्रेरणा देते हैं, वही प्रगति में सहयोग देते हैं। भारत माँ के शरीर को आज़ादी दिलाई महात्मा गांधी ने। अब भारत माता की आत्मा को आज़ादी दिलाने का महायज्ञ है। भारत को विश्व में, मानवता का वेद संदेश देने के लिए उदाहरण बनना है। वेद जो सत्य है, विज्ञान है, विद्या है, ज्ञान है, भारत भूमि का प्राण है।
सत्यमेव जयते
वन्दे मातरम्
- प्रणाम मीना ऊँ