घर की बात

समझौते के बल पर
जो घर बनता है
वह घर नहीं मकान होता है
घर प्यार पर बनता है
प्यार का घर बने न बने वो तो बस
प्यार सिर्फ प्यार ही होता है
जो हो गया सो हो गया
अब घर बने या न बने
प्यार तो प्यार होता है
दुनिया का दिखावा होता है
बसता तो कोई
बसता तो कोई
लाखों में एक होता है
पर ‘मैं तो सारी सृष्टि
सारे संसार में बसती हूँ’
यही सत्य है
यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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