घट-घट में पंछी बोलता
आप ही माली, आप बगीचा
आप ही कलियाँ तोड़ता
आप ही डंडी, आप तराजू
आप ही बैठा तोलता
सबमें सब पल आप विराजे
जड़ चेतन में डोलता।
कबीर जी की कथनी कितनी सरल और सटीक है! सब ज्ञान-विज्ञान का निचोड़ है। पर घर की मुर्गी दाल बराबर। यही हाल है पाश्चात्य सभ्यता के पीछे अंधे होकर दौड़ने वालों का। बड़ी हैरानी होती है दुनिया का तमाशा देख-देखकर। भारतीय कहलाने वाले हीलर्स और अध्यात्म विधाओं के मास्टर्स और गुरु लोग विदेशी तकनीकों वाले मास्टरों की बातें आँखें मूँदकर मान लेते हैं कि ऊर्जा का बदला (एनर्जी एक्सचेंज) या ऊर्जा का मूल्यांकन बहुत जरूरी है। इसी आधार पर प्रत्येक विद्या को तकनीकों में बाँधकर प्रदर्शन व कमाई का साधन बना लेते हैं। उनके व्यापारिक दृष्टिकोण को तो भाग कर कस कर पकड़ लेते हैं व कमाई की ही सोचने लगते हैं। जबकि हमारी पुण्य धरती के राम, कृष्ण, विवेकानंद, बुद्ध, मीरा, नानक, कबीर आदि की एक भी बात मानकर, तपस्या कर उस पर चलने की सोचते भी नहीं हैं। जितना खज़ाना यहाँ भारत में है सच्चे रास्ते का, उतना तो कहीं हो ही नहीं सकता पर ‘आँख के अंधे गाँठ के पूरे विदेशी माल उठाईगीरों को कौन समझाए और क्या समझाए।
अगर ज्ञान सच्चा व शुद्ध है तो द्रव्य पदार्थ धन साधन सब अपने आप ही उसको सहारा देने, बढ़ावा देने को सुलभ हो ही जाएँगे। प्रकृति स्वयं ही उसकी सहायता करेगी युक्ति करेगी संयोग भी जुड़ाएगी। उतना जुगाड़ तो हो ही जायेगा जितना सत्य की स्थापना के लिए जरूरी है।
सत्य का प्रसार होता है
प्रकाश का प्रसार होता है
प्रेम का भी प्रसार होता है
इसी से सत्य, प्रेम व प्रकाश का विस्तार होता है
झूठ का प्रचार होता है
अपूर्णता का प्रचार होता है
अंधकार का प्रचार होता है यही सत्य है
सत्य, प्रेम व प्रकाश अपना प्रसार अपने सत्य के बल पर कर ही लेता है चाहे समय लग जाए। पर यह समय भी प्रकृति के नियमों के अनुसार ही नियत होता है। क्योंकि सत्य को पहचानने वाले भी तो असत्य व अपूर्णता से चुनकर ही तैयार करने होते हैं। सत्य अपना मार्ग कभी भी नहीं बदलता, चाहे रास्ते में कितने ही रोड़े आयें, मुसीबतों के पहाड़ टूटे, सत्य चलता ही रहा है, सरस्वती वरदानयुक्त कलम की तरह। क्योंकि उसका अटल विश्वास होता है कि कष्टदायी परीक्षाएं सत्य का मार्ग प्रशस्त करने के लिए ही माध्यम होती हैं।
यही है सत्य की नियति तप-तपकर सोना बनना, पलकों से कांटे बीनना, दर्द के आँसुओं का जहर शिव बन घूँट-घूँट पीना और बस चुपचाप चलते ही चलना अकेले ही अकेले। सच्चाई को समझने वालों की प्रतीक्षा में समय के बहाव को रुकने न देकर। क्योंकि वह यह सत्य जानता है कि शैतान कैसे प्यार से अपने माध्यमों को पालता-पोसता है, खूब भोग-विलास और सुख-सामग्री का जुगाड़ कर देता है अपने प्राण प्यारों के लिए। पर वह कभी भी पालनहार नहीं कहलाता शैतान ही कहलाता है हत्यारा ही कहलाता है।
भगवान अपने प्यारों को तरह-तरह की परीक्षाएँ व कष्ट देता है पूर्ण बनाने के लिए। ज़रा भी माफी नहीं होती। अपने आप जितनी भी मज़ीर् हो कष्ट दे सताए और रुलाए पर कोई और अगर सत्य की साधना भ्रष्ट करता है या प्रकाश के प्रसार हेतु यज्ञों का हनन करता है तो मार ही देता है। कभी राम, कभी दुर्गा बनकर राक्षसों व दुराचारियों को। फिर भी हत्यारा नहीं कहलाता – पालनहार तारनहार ही कहलाता है। यही तो है सत्यमेव जयते। सत्य में पूर्ण आस्था वालों को, भारत की सत्यमयी वेदमयी नीति को प्रणाम का प्रणाम।
- प्रणाम मीना ऊँ