तुम यहाँ क्यों हो?
मैं यहाँ क्यों हूँ?
क्यों आए हो तुम यहाँ?
यही तो जानना है जानने योग्य है।
हम सभी उस परम चैतन्य सत्ता के कर्ता कारण हैं।
सभी उसी परम की ऊर्जा शक्ति से संचालित हैं।
उस परम शक्ति की परम बोधि, Supreme Intelligence, यह अच्छी तरह जानती है कि तुम कितनी पावर के बल्व हो इसलिए उतनी ही ऊर्जा तुम्हें प्रदान करती है जितनी तुम्हारे शरीर यंत्र के लिए ठीक है अपेक्षित है। अपने शरीर यंत्र की शुद्धि कर चक्रों का सन्तुलन कर उत्थान करकेउसकी क्षमता बढ़ानी होती है यदि अधिक ऊर्जा का प्रवाह परम स्रोत से आकर्षित करना है तो अपना शरीर यंत्र ट्यून tune, किए बगैर तकनीकों बाह्य उपकरणों या अन्य उपायों से परम ऊर्जा खींचने का प्रयत्न विनाशकारी भी हो सकता है। इसलिए अपरा ज्ञान, संसार से प्राप्त विज्ञान ही ठीक है जो तुम्हारी क्षमतानुसार ही कार्य कर पाता है। इसे ही वैज्ञानिक चिकित्सा कहते हैं पर हीलिंग केनाम पर जो खेल चल रहा है आजकल वह केवल भ्रमित करने वाला ही है। क्योंकि सच्ची व सही हीलिंग एक दम भिन्न है उसे पूर्णतया जाने बिना, समझे बिना उसके साथ न्याय नहीं किया जा सकता क्योंकि वह परम सत्य है-साई बाबा वाला, ईसा मसीह वाला या श्रीकृष्ण वाला सत्य। सभी सर्वोन्नत महान आत्माओं का सत्य।
मानवकृत धर्मों व चिकित्सा पद्धतियों को जानना समझना आसान है और पालन करना भी सरल होता है। मानव की बनाई सभी अपरा विधाएँ ग्रहण की जा सकती हैं पर उतनी ही जितनी मानव बुद्धि ने समझीं हैं। इनका अनुसरण करने पर यदि कुछ व्यवधान लगे तो मानव से पूछा भी जा सकता है और समाधान भी जाना जा सकता है। अब वो मानव गुरु स्वामी धर्माचार्य या कोई शिक्षक भी हो सकता है।
अपरा ज्ञान सांसारिक शिक्षा की देन है उसे तकनीकों में बांधा जा सकता है। संसार से प्राप्त ज्ञान की सीमितता होती है। यही धर्मों की धार्मिकता केसाथ भी होता है। बंधा बंधाया कार्यक्रम व पाठ्यक्रम बस रीतियों प्रदर्शनों प्रस्तुतिकरणों व प्रचार की पद्धतियों में ही विस्तार आता चला जाता है पर धर्म की सत्यता व तत्व की स्थापना का उपक्रम न के बराबर हो पाता है। फैलाव व प्रचार में सत्य कही खो जाता है। इसीलिए इस संशय युक्त प्रक्रिया से छुटकारा पाने के लिए कुछ प्रबुद्ध मानव अपने चिन्तन मनन उद्यम व पुरु षार्थ से सत्य प्राप्ति का मार्ग ढूंढ ही लेते हैं। वही मानव उत्थान की सीढ़ी चढ़ पाते हैं और युगदृष्टा हो जाते हैं। क्योंकि वह पराज्ञान को जान पाते हैं।
परा ज्ञान- अपरा ज्ञान से परे, Beyond, जाकर ही पाया जा सकता है और उसे किसी तकनीक में बांधा नहीं जा सकता। परा ज्ञान मानव की सृष्टि की ब्रह्माण्ड की अनदेखी रचना का ज्ञान है। परा ज्ञान ब्रह्माण्डीय ऊर्जाओं उसकी व्यवस्थाओं कार्य प्रणालियों का उसके रहस्यों का तथा इन सबका मानव अस्तित्व से संबन्ध का ज्ञान है। यह ज्ञान स्वत: ही सत्यात्मा के अन्तर में तब झरता है जब वो अपने स्थूल अस्तित्व बोध से परे जा पाता है। सभी सांसारिक समझौतों, Tunings, से परे होकर सत्य से एकाकार होता है तभी सत्य का पूर्ण साक्षात्कार कर पाता है।
पराज्ञान का उपयोग भी परम सत्यमयी सत्ता की व्यवस्था के अनुसार ही करना होता है। उसमें मानव की जोड़ तोड़ वाली बुद्धि का कोई काम नहीं अपरा ज्ञान तोड़ा मोड़ा घुमाया बरगलाया जा सकता है परन्तु परा ज्ञान स्वयंसिद्ध सत्य का मूर्तरूप होता है उसे यथारूप में ही प्रवाहित किया जा सकता है। सत्य तो यह है कि अपरा, संसार से प्राप्त ज्ञान का प्रयोग भी परा ज्ञान को समझाने व उसकी सत्यता स्थापन में लगाया जाए। वो परा ज्ञान जो शक्तिवान व ज्ञानवान बना आत्मबल बढ़ाता है, तेजोमय व्यक्तित्व व ओजपूर्ण वाणी देता है। वेद व विज्ञान और विद्या व ज्ञान के मिलन का मंच होता है, पूर्ण योग का आधार होता है। उसमें व्यवधान डालना ही मानव उत्थान में बाधा है। इसका उपयोग मानव कल्याण हेतु करना ही सही धर्म है पर होता अधिकतर इसका वितरीत ही है। तेजोमय व्यक्तित्व ओजपूर्ण वाणी और पराज्ञान की शक्तियों का प्रयोग अपराज्ञान व अपनी स्वार्थी बुद्धि के व्यवसायिक उद्देेश्यों के लिए किया जाने लगता है।
ज्ञान का अहंकारी सच्चिदानन्द केसत्य स्वरूप के दर्शन के मार्ग से भटक जाता है। ज्ञान का अहंकार बुद्धि भ्रष्ट कर देता है सही रास्ता भुला देता है और धन का अहंकार अंधकार में, अज्ञानता में धकेल देता है। सत्कर्मों का फल नष्टï कर देता है। अहंकार वैसे तो हर चीज़ का बुरा है पर जिसको प्रभु कृपा से ज्ञान मिले और उसने उसका सही उपयोग न किया तो यह परमबोधि, Supreme Intelligence, को व प्रभु को कभी भी स्वीकार्य नहीं। क्योंकि प्रभु स्वयं ज्ञान स्वरूप हैं और किसी उद्यमी तत्पर चैतन्य व सत्य मानव को चुनकर ही ज्ञान देते हैं। अपना ही स्वरूप बनाने को ताकि उस परम का स्वरूप सत्य मानव में भी परिलक्षित हो और अन्य मानव उस उदाहरण स्वरूप मानव से मार्गदर्शन पाकर उसके स्वरूप से प्रेरणा पाकर सच्चाई समझकर सत्यपथ पर चल कर उन्नत हो उत्कृष्टता को प्राप्त हों। ज्ञान का सदुपयोग ही प्रभुत्व को रिझा पाता है।
तो हे मानव बन्द कर पवित्रतम ऊर्जाओं की शक्तियों से खिलवाड़ हीलिंग के नाम पर। व्यवसायीकरण इनका उद्देश्य नहीं, इनका उद्देश्य है सत्यता और पूर्णता को स्थापित करना और असत्य व अपूर्णता को तिरोहित करना। यदि मानव प्रकृति के इस कर्म में सहायक नहीं होता तो कम से कम बाधा तो न बने।
प्रकृति को अपने कर्म में कोई बाधा स्वीकार्य नहीं होती वह स्वत: ही नश्वर असत्य का विनाश कर शाश्वत सत्य स्थापन के कर्म में निरन्तर संलग्न रहती है। तो हे मानव अपना सत्य जान तू किस हेतु अस्तित्व में आया- सत्य के लिए या असत्य के लिए, अन्धकार के लिए या प्रकाश के लिए, जानकर अपना सत्य बन सत्य प्रेम कर्म व प्रकाश का राही।
भेद असत्य की दीवार
कहे प्रणाम पुकार
- प्रणाम मीना ऊँ