जब तक इंसान दूसरे इंसानों से ऊर्जा लेकर काम चलाएगा, शक्ति लेगा उसके दुखों का अन्त नहीं होगा क्योंकि इंसान से ऊर्जा लेने पर उसके कर्मों का बोझा भी ढोना पड़ता है। जब मनुष्य दूसरे से ऊर्जा लेता है तो बंधता है जब अपने आप ब्रह्माण्ड से ऊर्जा लेता है किसी और पर निर्भर नहीं होता ऊर्जा के लिए, तो मुक्त होता है स्वतंत्र होता है।
स्वतंत्र होना बंधन मुक्त होना ही मानव की नियति है। मानव ही इसके विरुद्ध जाता है और कर्मफल बंधन में बंधकर कष्ट भोगता है। अपने बंधन ही खोल खोलकर समाप्त करना इतना कठिन है कि पूरा का पूरा जीवन लग जाता है इसी में तो और इंसानों से भी ऊर्जा लेकर भोगना तो अन्याय ही है इस मानव तन मन के साथ। हाँ! यदि आपने अपने सब कर्म भोग लिए हैं काट लिए हैं हिसाब किताब बराबर कर लिया है और आप शक्तिमान हो गये हैं तो खुलकर खेलें इस जीवन का खेल पूरे मन से।
प्रसन्नता से आत्मानुभूति से निस्वार्थ प्रेम से
निर्भय निर्वैर और निर्द्वन्द होकर खेलें !!
- प्रणाम मीना ऊँ