छोटे-छोटे अहम् पाल अपनी छवि से स्वयं संतप्त होता है मानव। छोटे-छोटे झूठ अहम् के ही रूप हैं। अपनी प्रत्येक कला को ज्ञान को इस सम्पूर्णता तक ले आना कि अहम् अहम्ब्रह्म हो जाए और फिर अहम् ब्रह्मास्मि वाली स्थिति तक पहुँचकर भी उस अहम् ब्रह्मास्मि में भी रमना ना हो। उसका भी अहम् त्यागकर प्रभुमय हो यह कामना करना कि सब जन कष्टरहित हों सुखी हों…ऊँ
यही परम धर्म है
परमानन्द है
अपने सबसे बड़े शत्रु अहम् का नाश करने की शक्ति जगाने का जतन कर मानव!
इस अहम् में ”मैं” कहीं नहीं उसमें उसका ”मैं” का कोई स्थान नहीं इस परम अहम् में सब वो ही वो है वो ही है
सर्वशक्तिमान जो तू है
यही है अहम् का सत्यरूप
- प्रणाम मीना ऊँ