अग्निपथ

शुक्र का सूर्य परागमन हुआ
वीनस सौंदर्य का प्रतीक
एकदम ठंडा व एकदम गर्म
दोनों का संतुलन ही सौंदर्य उपजाए
अग्निपथ से तप कर शुद्ध तो होना ही होता है
शुरू कर दी है यह यात्रा
तपस्यामयी जिन्होंने
प्रणाम के प्रवाह के साथ-साथ
वो तो आसानी से जाएँगे गुज़र
होकर जीवन की हर बाधा से तर
युगों जैसे वर्षों से मेरी बातें सुन-सुन
क्रोध मेरा कर सहन
प्रताड़नाओं का मर्म गुन गुन
तैयार हो रहे अपनी ही
समर्पण की शक्ति से
निर्मल भक्ति से
अथक प्रयत्न से सतत् कर्म से
गुज़रते रहेंगे हर पीड़ा से हर तरह की पीड़ा से
पर टिके रह पाएँगे वो ही
जो होंगे पूर्ण ज्ञान कर्म व भक्ति से
यही सत्य है यहीं सत्य है

  • प्रणाम मीना ऊँ

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