सौंदर्य दिव्यता का ही गुण है

सौंदर्य दिव्यता का ही गुण है

उत्कृष्टता और सौंदर्य एक दूसरे के पूरक हैं। सम्पूर्ण सौंदर्यमय व्यक्तित्व के सभी अंग तन मन बुद्धि त्रुटि रहित, सौंदर्योत्पत्ति करते हैं। दिव्य स्वरूप दिव्यात्मा आदि शब्द इसी स्वरूप की व्याख्या करते हैं।
सौंदर्य जैसी दिव्यता का भी व्यापार बना दिया- भोगी संस्कारहीन पथभ्रष्ट मानवता ने। पुरुष के अहंकार ने, अहम् ने नारी के सौन्दर्य का मापदण्ड ही बदल के रख दिया। प्रसाधनों तक सीमित कर दिया उसकी सौंदर्य की दौड़ को। सौंदर्यशालाओं को कृत्रिम व ऊपरी सौंदर्य बढ़ाने की फैक्टरियाँ बना दिया। नित नए सौंदर्य प्रसाधन लाकर और बढ़ा दी उसकी दासता। मूर्ख बनती है ज्ञानहीन अज्ञानी नारी, ऊपरी तामझाम रख रखाव, बनावटी रूप से सुंदर हो किसे रिझाना है मूर्ख बनाना है। सम्पूर्ण व्यक्तित्व जब सत्यम् शिवम् सुन्दरम् हो तभी बात बनती है।
अपना आत्म विश्वास जगाना है ज्ञान ज्योति प्रज्जवलित करके ना कि तरह-तरह की केशसज्जा और विवेकहीन लीपा-पोती से। श्रृंगार का भी महत्व है, उसे नकारा नहीं जा सकता। पर श्रृंगार भी स्वस्थ व सुंदर मन मस्तिष्क की स्वामिनी पर ही अधिक खिलता है। खूब श्रृंगार किया हो, देखने में सुन्दर भी हो पर मुंह खोलने पर मूर्खता टपके तो कैसा सौंदर्य। पहले व्यक्तित्व विकास फिर हास-विलास साज श्रृंगार।
कर्म सकल तब विलास। सम्पूर्ण विकसित व्यक्तित्व सदा ही अपने आप में सौंदर्य की प्रतिमूर्ति है। सम्पूर्ण शोभामय व्यक्तित्व ही सौन्दर्यवान है। सत्य ही सौन्दर्य है। जैसे प्रत्येक जीव का नन्हा बच्चा कभी भी असुंदर नहीं लगता क्योंकि निष्पाप है निश्च्छल है प्रेममय है और प्रकृति की अनुपम कृति है।
जय सत्येश्वर

  • प्रणाम मीना ऊँ

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